टप टप बस में बरसा पानी: *अवध डिपो की जनरथ वातानुकूलित बस से टपक रहा पानी रात को रक्षाबंधन के यात्री छाता लेकर करेंगे सफर* *लखनऊ* उ०प्र०परि० निगम अवध डिपो लखनऊ क्षेत्र की प्रयागराज मार्ग की बस को 13/08/2019 को दिल्ली भेजा गया है,शासन द्वारा शख्त निर्देश होने के बावजूद भी कार्यशाला में बसों का काम नही हो रहा है,जब कोई दुर्घटना होगी तो चालक को जिम्मेदार ठहरा कर बच लेंगे,बरसात के इस मौसम में पूरी बस के अंदर पानी भर रहा है और सीटे भी भीग रही है ऐसे में कैसे यात्री सफर करेंगे जबकि 14/08/2019 की मध्यरात्रि में इस बस को रक्षाबंधन के यात्री लेकर बापस लखनऊ आना है। *कृत्य:नायाब टाइम्स*


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हैप्पी बर्थडे राधा विष्ट जी: *यौमे पैदाइश की पुरखुलूस मुबारकबाद राधा विष्ट साहेबा को जो "कोरोना वाररिर्स" महामारी के माहौल में जनता की सेवा में सदैव हैं* लखनऊ, *यौमे पैदाइश की पुरजोर मुबारकबाद* राधा बिष्ट डॉ० "फार्मेसिस्ट" प्रभारी राजकीय होम्योपैथी चिकित्सालय (सदर) कैनाल भवन परिसर कैण्ट रोड लखनऊ को हमारी रब से दुआ है कि वो सदैव इस जहांन में लम्बी आयु के साथ सपरिवार स्वस्थ रहे। जो कोरोना वाररिर्स महामारी के माहौल में जनता की सेवा में रहा करती हैं और कोविड-19 से बचाव की दवाओ के साथ साथ कुछ क्षेत्रीय जटिल रोगों की भी दवाओं को परेशान जनता को साथ साथ पर्वत सन्देश के मोहन चन्द्र जोशी "सम्पादक" जानकी पुरम लखनऊ (उ०प्र०) निवासी दवाए प्राप्त करते हुए उनके साथ मनोज कुमार हैं । राधा बिष्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि चिकित्सालय में आनेवाले मरीज़ो को सदैव उनकी समस्या का निराकरण कर उन्हें उचित परामर्श एवं अनुभव के आधार पर दवाए उपलब्ध चिकित्सालय में कराती हैं "हैप्पी बर्थडे राधा विष्ट" जी । कृत्य:नायाब टाइम्स
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ओपीडी सेवाए रायबरेली में प्रारम्भ: *"मुख्य चिकित्सा अधीक्षक" ने चिकित्सको के साथ ओपीडी सेवाए स्वस्थ्य प्रशासन के निर्देश जनता की सेवाओं हेतु सभी प्रारम्भ करदी है।* रायबरेली,स्वस्थ्य प्रशासन ने जनता की सेवा में जिला अस्पताल की ओपीडी सेवाए शुक्रवार से नियमित प्रारम्भ करदी है पूर्व की तरह जनता व नागरिकों के बीच अपनई पहचान रखने वाले जिला अस्पताल रायबरेली के डॉ०नरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव "मुख्य चिकित्सा अधीक्षक" एवं उनके चिकित्सको की टीम जो अस्पताल में मेडिकल उपचार करने वाले डॉक्टर्स पर तीब्र दिष्ट रख मरीजो को अच्छी सेवा दिए जाने पर ध्यान रखते है। डॉ०जय सिंह "वरि०फिजीशन" प्रभारी औषधि भण्डार, डॉ०बीरबल "एम०ङी०" (वरिष्ठ,फिजीशन), डॉ०अल्ताफ हुसैन "वरिष्ठ रेडियोलॉजिस्ट", रंजना श्रीवास्तव "सुपरिटेंडेंट नर्स" मरीजो को अच्छी सेवा के साथ परीक्षण कर वो दवाए लिखते है,जिससे की मरीज़ को आराम मिले और वो अति शीघ्र से जल्द ठीक हो जाये। सुरेश कुमार चौधरी (मुख्य फॉर्मेसिस्ट) मरीज़ों को डॉक्टर्स द्वारा परामर्श कर लिखी दवाई स्टोर एवं दवा काउन्टर इंचार्ज सुरेन्द्र पटेल,पंकज सिंह वा शिवम शर्मा "लिपिक-मुख्य चिकित्सा अधीक्षक",संजय कुमार प्रजापति (लिपिक),प्रभात चन्द्र, दिनेश कुमार यादव,कुसुमलता (नर्स),निरूपमा श्रीवास्तव "स्टाफ़ नर्स",अभिलेख स्टोर इंचार्ज/वरिष्ठ मुख्य फार्मेसिस्ट राजेश कुमार सिंह भी सभी को अपनी सेवाओं से मुहैया करा कर कुशल सेवा देने में कोई कोताही नही करते क्योंकि मुख्य चिकित्सा अधीक्षक की नज़र अस्पताल के सभी छोटे व बड़े कर्मचारियों पर भी रहा करती है। कृत्य:नायाब टाइम्स
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अमीन सयानी:17 साल की उम्र में जिसने मुल्क़ की आज़ादी के ख्वाब को अपनी आँखों में संजोया और सब कुछ छोड़ गाँधी जी के कदमों के पीछे अपने पाँव बढ़ा दिए। एक लड़की जिसके जज़्बे के आगे अंग्रेज़ों को तो झुकना पड़ा था और लीगियों को भी झुक जाना पड़ा। उन्हें दोहरी लड़ाई लड़नी थी। एक अंग्रेज़ों को बाहर निकालने की दूसरी मुस्लिम लीग की विभाजनकारी नीतियों के विरुद्ध। गाँधी जी का इस तेज़ तर्रार महिला पर हाथ था तो इस महिला का का हाथ समाज की नब्ज़ पर था। अपने दम पर गुजरात में रहने वाली यह अंग्रेज़ों को तो धूल चटा ही गईं साथ आने वाले भारत की बुनयाद भी रख गईं। यही वो पहली महिला थीं जिसने गुजरात भर में घूम घूम कर स्कूल खोले, शिक्षा का प्रचार किया।लड़कियों की पढ़ाई पर इतना ज़ोर दिया कि कांग्रेस के कार्यालयों में भी क्लास चलने लगी। जब आज़ादी के वक़्त मुस्लिम लीग ने लोगों को भड़काने का काम किया तो इन्होंने शिक्षा का ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया की उसके सामने सब बौने हो गए। आज़ादी की इस महत्वपूर्ण साथी ने देश आज़ाद होने पर कुछ भी नही लिया। ख़ामोशी से तालीम के छोटे छोटे चिराग जलाती हुई चली गईं। हममे से किसी को उन्हें याद करने की भी फुर्सत नही। हमारे मुल्क़ के ढाँचे में ऐसे लाखों चेहरे दफ़न हो गए, जिन्हें शायद हमे याद रखना था। काँग्रेस के "जन जागरण" अभियान को इन्होंने ही सबसे सफल बनाया। जब सब तरफ मायूसी थी तब इन्होनें "रहबर" नाम से एक प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलाया जो बेहद सफल हुआ। उस दौर में उनके इतना प्रौढ़ शिक्षा पर किसी ने काम नही किया। दसियों किताबें लिखी मगर अब वो ज़िक्र से ही बाहर हैं। यह महिला हैं कुलसुम सयानी। आज उनकी पुण्यतिथि है हो सके तो मुल्क़ की नीव रखने वाले हर हाथ को ढूंढकर महसूस कीजिये। वैसे लोग कुलसूम आपा को भले ही न जानते हों मगर उनके बेटे रेडियो की मशहूर आवाज़ "अमीन सयानी" को ज़्यादातर जानते ही होंगे पर उनसे पहले ताउम्र फिरकापरस्तों से जूझने वाली कुलसुम सयानी को याद कर लीजिये। नीचे तस्वीर में कुलसूम आपा अपने बड़े बेटे हमीद सयानी के साथ और जो लड़का है वो है अमीन सयानी।
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प०राम प्रसाद बिस्मिल जी हज़रो नमन: *“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” : कब और कैसे लिखा राम प्रसाद बिस्मिल ने यह गीत!* राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का नाम कौन नहीं जानता। बिस्मिल, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें 30 वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षडयंत्र व काकोरी-कांड जैसी कई घटनाओं मे शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। भारत की आजादी की नींव रखने वाले राम प्रसाद जितने वीर, स्वतंत्रता सेनानी थे उतने ही भावुक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू उपनाम था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है ‘गहरी चोट खाया हुआ व्यक्ति’। बिस्मिल के अलावा वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। *राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ की तरह अशफ़ाक उल्ला खाँ भी बहुत अच्छे शायर थे। एक रोज का वाकया है अशफ़ाक, आर्य समाज मन्दिर शाहजहाँपुर में बिस्मिल के पास किसी काम से गये। संयोग से उस समय अशफ़ाक जिगर मुरादाबादी की यह गजल गुनगुना रहे थे* “कौन जाने ये तमन्ना इश्क की मंजिल में है। जो तमन्ना दिल से निकली फिर जो देखा दिल में है।।” बिस्मिल यह शेर सुनकर मुस्करा दिये तो अशफ़ाक ने पूछ ही लिया- “क्यों राम भाई! मैंने मिसरा कुछ गलत कह दिया क्या?” इस पर बिस्मिल ने जबाब दिया- “नहीं मेरे कृष्ण कन्हैया! यह बात नहीं। मैं जिगर साहब की बहुत इज्जत करता हूँ मगर उन्होंने मिर्ज़ा गालिब की पुरानी जमीन पर घिसा पिटा शेर कहकर कौन-सा बड़ा तीर मार लिया। कोई नयी रंगत देते तो मैं भी इरशाद कहता।” अशफ़ाक को बिस्मिल की यह बात जँची नहीं; उन्होंने चुनौती भरे लहजे में कहा- “तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊँगा आपकी सोच जिगर और मिर्ज़ा गालिब से भी परले दर्जे की है।” *उसी वक्त पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने यह शेर कहा* “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजु-कातिल में है?” यह सुनते ही अशफ़ाक उछल पड़े और बिस्मिल को गले लगा के बोले- “राम भाई! मान गये; आप तो उस्तादों के भी उस्ताद हैं।” आगे जाकर बिस्मिल की यह गज़ल सभी क्रान्तिकारी जेल से पुलिस की गाड़ी में अदालत जाते हुए, अदालत में मजिस्ट्रेट को चिढ़ाते हुए और अदालत से लौटकर वापस जेल आते हुए एक साथ गाया करते थे। बिस्मिल की शहादत के बाद उनका यह गीत क्रान्तिकारियों के लिए मंत्र बन गया था। न जाने कितने क्रांतिकारी इसे गाते हुए हँसते-हँसते फांसी पर चढ़ गए थे। पढ़िए राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखा गया देशभक्ति से ओतप्रोत यह गीत – सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है? वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ! हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है? एक से करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है। रहबरे-राहे-मुहब्बत! रह न जाना राह में, लज्जते-सेहरा-नवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है। अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत अब दिले-‘बिस्मिल’ में है । ए शहीद-ए-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है। खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है? है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर, और हम तैयार हैं सीना लिये अपना इधर। खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। हाथ जिनमें हो जुनूँ , कटते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से, और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है , सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पे कफ़न, जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम। जिन्दगी तो अपनी महमाँ मौत की महफ़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार, “क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?” सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है? दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज। दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है! सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमें न हो खूने-जुनूँ, क्या वो तूफाँ से लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है। पं० राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ उनके इस लोकप्रिय गीत के अलावा ग्यारह वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में बिस्मिल ने कई पुस्तकें भी लिखीं। जिनमें से ग्यारह पुस्तकें ही उनके जीवन काल में प्रकाशित हो सकीं। ब्रिटिश राज में उन सभी पुस्तकों को ज़ब्त कर लिया गया था। पर स्वतंत्र भारत में काफी खोज-बीन के पश्चात् उनकी लिखी हुई प्रामाणिक पुस्तकें इस समय पुस्तकालयों में उपलब्ध हैं। 16 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा का आखिरी अध्याय (अन्तिम समय की बातें) पूर्ण करके जेल से बाहर भिजवा दिया। 18 दिसम्बर 1927 को माता-पिता से अन्तिम मुलाकात की और सोमवार 19 दिसम्बर 1927 को सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें फाँसी दे दी गयी। राम प्रसाद बिस्मिल और उनके जैसे लाखो क्रांतिकारियों के बलिदान का देश सद्येव ऋणी रहेगा! जय हिन्द !
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एआरएम ने बाटे पेन:*विश्व महिला दिवस पर एआरएम ताजदार ने बाटे पेन* लखनऊ, चारबाग बस स्टेशन लखनऊ के ताजदार हुसैन "एआरएम" 'बस स्टेशन प्रबंधक' ने कहा *नारी निन्दा न करो नारी जन की खान नारी से नर होत है ध्रुव प्रहलाद समान* विश्व महिला दिवस पर सभी महिलाओं को तहे दिल से कोटि कोटि बधाई देते हुए पेन बस स्टैंड पर बाते एवं ढेरों शुभकामनाएं उन्हें दिया। कृत्य:नायाब टाइम्स
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