देशमुख की जबानी मेवात की दास्तां: 🌙 ___मरकज़ निजामुद्दीन;ऐतिहासिक पृष्ठभूमि--* ----------------***----------------- सन् 1855ई0 में तबलीग़ी जमात के संस्थापक मौलाना मुहम्मद इल्यास (रह0) के अब्बा जान(पिता जी) मौलाना इस्माइल साहब, इलाहीबक्श के बच्चों को पढ़ाने के लिए कांधला से दिल्ली आए। इलाहीबक्श, बादशाह बहादुर शाह जफर के निजी चिकित्सक व समधि थे। ये वही इलाहीबक्श है जिसने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के लिए जासूसी की और किले के बहुत महत्वपूर्ण सूचनाएं अंग्रेजों तक पहुँचाई। यही नहीं बादशाह बहादुर शाह जफर को भी इसी ने गिरफ्तार करवाया था। जैसाकि होता है। 1857 की क्रांति की विफलता के बाद ,इलाहीबक्श भी अपराध बोध का शिकार हो गया और परेशान रहने लगा। काफी दिनों बाद इन्होंने अपनी परेशानी मौलाना मुहम्मद इस्माइल साहब को बताई। मौलाना ने उनका रूहानी इलाज किया,जिससे इलाहीबक्श को दिमागी सुकून मिला। इसके बाद इलाहीबक्श ने दिल्ली छोड़ दी और निजामुद्दीन आकर रहने लगे। यहाँ उन्होंने एक आलीशान बंगला बनवाया और उसके पास ही एक मस्जिद बनवाई, जो आगे चलकर बंगले वाली मस्जिद कहलाई। मस्जिद के साथ ही एक हुजरा बनवाया और मौलाना मुहम्मद इस्माइल को साहब मरहूम को मस्जिद की इमामत का जिम्मा सौंपा गया। उस समय मेवात से दिल्ली जाने के लिए पैदल का रास्ता वाया धौज व निजामुद्दीन था। मेवाती इसी रास्ते से मजदूरी करने दिल्ली जाते थे। मस्जिद के सामने मीठे पानी का कुआँ था। जहाँ मेवाती अपने साथ लाया खाना खाते , दोपहरी में पेड़ों के नीचे आराम करते और दिल्ली की ओर चल देते। एक दिन मौलाना इस्माइल अकेले थे। उन्होंने ज़ोहर की आज़ान दी और जमात के लिए किसी दूसरे आदमी का इन्तज़ार करने लगे। उल्लेखनीय है कि उस समय निजामुद्दीन के आस -पास आबादी नहीं थी,बस हजरत निजामुद्दीन औलिया की मजार थी जिसके दक्षिण की ओर दरगाह के खादिमों के मकान थे। बाकी चारों ओर जंगल था। मौलाना साहब आदमी की तलाश में मस्जिद से बाहर निकले तो उन्हें कुछ मेवाती आते हुए दिखाई दिये। मौलाना ने उन्हें रोका और नमाज़ की दावत दी। मगर मेवाती तो नमाज़ जानते ही नहीं थे।-- खैर मौलाना ने उन्हें वजू करवाया और फिर नमाज़ पढ़ाई। नाम के बाद उनसे पूछा, " कहाँ जा रहे हैं?" मेवातियों ने जवाब दिया," दिल्ली मजदूरी करने जा रहे हैं।" यह सुन कर मौलाना ने कहा," अगर तुम्हें मजदूरी यहीं दे दो जाए तो कर लोगे।" मेवातियों ने कहा," हमें तो मजदूरी करनी है, कहीं भी कर लेंगे ।" उस दिन से मौलाना रोजाना उन्हें नमाज़ सिखाते/पढ़ाते और शाम को मजदूरी दे देते। इसी तरह 15-20 दिन गुजर गए। एक दिन मेवातियों ने आपस में सलाह-मशविरा किया। " यार,मौलाना हमारे पास काम भी नहीं कराते और अच्छी-अच्छी बातें भी बताते हैं और मजदूरी भी पूरी देते हैं। यार, मौलाना सू बिना काम मजदूरी लेणो ठीक नांय।" इसके बाद उन्होंने मौलाना से मजदूरी लेने से मना कर दिया और उनसे लिए पैसे भी वापिस कर दिये। कुछ दिन बाद वे मौलाना को मेवात लेकर आए। फिरोजपुर नमक में उनका मुकाम रहा। उसके बाद मेवात कुछ बच्चे पढ़ने के लिए निजामुद्दीन गये। इस तरह बंगले वाली मस्जिद में निजामुद्दीन मदरसे की शुरूआत हुई। मौलाना मुहम्मद इस्माइल साहब की 1898 में वफ़ात हो जाने के बाद उनके बड़े बेटे मौलवी मुहम्मद अहमद ने निजामुद्दीन मदरसे को संभाला। वे भी मेवात आते-जाते रहे। मौलवी मुहम्मद अहमद की वफ़ात 1917 में हुईं। इस समय उनके सबसे छोटे भाई मौलवी मुहम्मद इल्यास साहब, मदरसा मुजाहिर-उल-उलूम,सहारनपुर में मुदर्रिस थे। मौलवी मुहम्मद अहमद की वफ़ात के बाद लोगों ने मौलवी मुहम्मद इल्यास साहब से दरख्वास्त की, कि अब आप अपने बाप और भाई के लगाये हुए पौधे को सींचने के लिए निजामुद्दीन चलें। मौलाना पहले तो तैयार नहीं हुए मगर जब लोगों ने ज्यादा इसरार किया तो आप निजामुद्दीन आ गये। मेवातियों को जब पता चला कि मौलवी इस्माइल साहब के छोटे बेटे निजामुद्दीन आ गये हैं तो वे बहुत खुश हुए और निजामुद्दीन उनसे मिलने पहुँच गये। कुछ दिन बाद मेवातियों ने मौलाना इल्यास साहब से मेवात चलने की दरख्वास्त की। मौलाना ने कहा,"एक शर्त पर मेवात चल सकता हूँ कि मेवात में एक मकतब(मदरसा) खोलने की हाँ करो तो ।" मेवातियों ने हाँ कर दी। उसके बाद मौलाना इल्यास साहब फिरोजपुर नमक आए और आते ही अपनी शर्त याद दिलाई। इसके बाद फिरोजपुर नमक में मेवात के पहले मकतब की स्थापना हुई। उसके बाद इसी सफर में कुल दस मकतब चालू किये गये। इस तरह कुछ ही दिनों में मेवात में सैकड़ों मकतब शुरू हो गई। मौलाना समय-समय पर इन मकतबों की प्रोग्रेस रिपोर्ट लेते। कुछ ही दिनों में मौलाना इस नतीजे पर पहुंचे कि सिर्फ मकतबों से मेवात की जहालत दूर नहीं हो सकती। इसके बाद उन्होंने मेवात का सर्वे कराया तो रिपोर्ट मिली कि मेवात में मस्जिदें बहुत कम हैं और जो हैं वे भी बन्द पड़ी हैं। नमाज तो क्या लोगों को कलमा भी याद नहीं है। लोग गैरइस्लामी परम्पराओं में इस कद्र फंसे हुए हैं कि वे असल इस्लाम से कोसों दूर हैं। इसी दौरान मौलाना के सामने एक नौजवान लाया गया। बताया गया ये लड़का फलां मकतब से फारिग है। उसका लिबास और चेहरा (दाढ़ी-मूंछ) सफा चट किसी तरह भी इस्लामी नहीं था। यह देख मौलाना को बड़ा दुःख हुआ। अब उन्हें यकीन हो गया कि सिर्फ मकतबों से मेवात की जहालत दूर नहीं हो सकती। इसी समय आप सन् 1932 में तीसरे हज के लिए मक्का गये। यहाँ आपको सपना देखा," आपसे काम लेना है।" सुबह उठे तो बहुत चिन्तित थे। आलिमों से तासीर पूछी। आलिमों ने ढाढ़स बंधाया। चिन्ता मत करो। आपसे काम ही लेना है। क्या काम लेना है वे खुद ले लेंगें। हज से वापिस आए,तो एक योजना बनाई। लोगों को मस्जिद तक लाएं और उनसे बात करें। उसके बाद 02 अगस्त, सन्1934 ई0 को नूँह में पूरे मेवात की एक पँचायत बुलाई गई। इस पँचायत में पूरे मेवात से 107 जिम्मेदार लोगों ने शिरकत की। पँचायत की अध्यक्षता मौलाना इल्यास साहब ने की। पँचायत में 15 प्रस्तावों पर सहमति बनी। मुख्य तौर मस्जिदें आबाद करना व नई मस्जिदें तामीर(निर्माण) करना,तालीम का इन्तजाम करना, मेव मर्द व औरतों के गैरशरअई(गैर इस्लामिक) लिबास को बदलना,आपस के झगड़ों को निपटाना, दहेज बन्द करना, दीन की दावत व तबलीग करना इत्यादि। धीरे-धीरे काम शुरू हुआ। तीन नियम बनाए गये। गश्त, नमाज, और तालीम। इसके बाद सन् 1939 में चिल्ले (40 दिन) की पहली जमाअत कांधला और फिर दूसरी जमाअत रायपुर भेजी गई। जमाअतों के लिए छ: बिन्दुओं पर काम करने के लिए जाना तय हुआ 1-कलमा (तौहीद)- कलमा याद करवाना, कलमे का मतलब क्या है और कलमे का महत्व क्या है। 2-नमाज़-नमाज सीखना,नमाज़ क्या है,नमाज़ का हमारे जीवन में महत्व क्या है। 3- हर मोमिन को कम से कम इतना इल्म सीखना चाहिए कि उसे हराम-हलाल ( वैध-अवैध) का ज्ञान हो जाए। 4-इकराम-ए-मुस्लिम-एक मुसलमान कैसा हो। उसका चरित्र, व्यवहार, मामलात व मासरात (लेन-देन) कैसे हों। 5-इखलास-ए-नियत 6-दावत-ए-तबलीग-सभी मुसलमानों को दीन की दावत दी जाए। इस तरह एक योजनाबद्ध तरीके से काम शुरू हुआ। जमाअत में जाने वालों के लिए भी नियम बने। वे मस्जिद में ठहरेंगे अमीर की बात मानेंगे सर नीचा करके चलेंगे धीरे बोलेंगे अपना माल व जान तथा समय लगाएंगे। कोई दुनियावी बात नहीं करेंगे। इस तरह जमाअत के लोग सिर्फ जमीन से नीचे (कब्र) की और आसमान से ऊपर (जन्नत-जहन्नुम) ही बात करते हैं। सियासत,साम्प्रदायिकता और संकीर्णता से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। शुरूआत में समाज सुधार पर काफी जोर दिया गया था। लोगों के आपसी झगडों को सुलझाना,बिना दहेज की शादियाँ करवाना,जिनका निकाह जलसों में हजरत जी खुद पढ़ाते थे इत्यादि। तबलीग ने न केवल अर्धसभ्य मेवों को सभ्य बनाया बल्कि उन्हें वास्तविक इस्लाम से रूबरू कराया और पूरी दुनिया में मेवात की एक नई पहचान कायम हुई। आपकी दुआओं का तालिब हकीम रियाज अहमद देशमुख.✍️


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मुत्यु लोक का सच:*आचार्य रजनीश* (१) जब मेरी मृत्यु होगी तो आप मेरे रिश्तेदारों से मिलने आएंगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो अभी आ जाओ ना मुझ से मिलने। (२) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरे सारे गुनाह माफ कर देंगे, जिसका मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो आज ही माफ कर दो ना। (३) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरी कद्र करेंगे और मेरे बारे में अच्छी बातें कहेंगे, जिसे मैं नहीं सुन सकूँगा, तो अभी कहे दो ना। (४) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आपको लगेगा कि इस इन्सान के साथ और वक़्त बिताया होता तो अच्छा होता, तो आज ही आओ ना। इसीलिए कहता हूं कि इन्तजार मत करो, इन्तजार करने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है। इस लिये मिलते रहो, माफ कर दो, या माफी माँग लो। *मन "ख्वाईशों" मे अटका रहा* *और* *जिन्दगी हमें "जी "कर चली गई.*
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मौत का कारण लज़ीज़ खाने: *ह्र्दयरोग विशेषज्ञ मिर्तुलोक पे नहो तो मानव का बचना मुश्किल "डॉ०प्रवीण प्रधान"* लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डॉ०श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल हास्पिटल पार्क रोड लखनऊ के गहन चिकित्सा कक्ष में तएनात डॉ०प्रवीण प्रधान "ह्र्दयरोग विशेषज्ञ" मरीजों की सेवा में दिन हो या रात जहां लगें रहते हैं वही उनका मत है कि मिर्तुलोक पे हदृय रोग की बीमारी बहुत अधिक बढ़ती जारही है जिससे मानव की मौत भी अधिक हो जाती है लेकिन आज कल मानव अपने जीवन का न खयाल कर तरह तरह के लज़ीज़ खाने व पकवानों का सेवन इस कदर करता है कि ह्र्दय रोग से ग्रस्त हो कर अपनी आने वाली नाशलो वो बीज बोदेता है यही ह्र्दय रोग का कारण ही है। कृत्य:
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लखनऊ में फिल्मों की शूटिंग: *धमाकेदार,रोमांच से भरपूर फ़िल्म (प्यार में थोड़ा ट्विस्ट) की लखनऊ में हो रही शूटिंग, विख्यात एक्टर अपनी-अपनी कला का कर रहे प्रदर्शन* *लखनऊ* फ़िल्म जगत में लखनऊ(नवाबों का शहर) शूटिंग के मामले में जबरदस्त पहल करता जा रहा है, 07 नवंबर 2019 से 20 नवम्बर 2019 तक लखनऊ में होने बाली फ़िल्म की शूटिंग *(प्यार में थोड़ा ट्विस्ट)* एक दिलचस्प कहानी को प्रोड्यूस कर रहे विवेक फिल्म्स प्रोडक्शन हाउस, प्रोड्यूसर मंजू भारती, क०-प्रोडयूसड वीएसबी पिक्चर प्राइवेट लिमिटेड, क०-प्रोड्यूसर विजय सिंह भदौरिया/अजीता भदौरिया/नूर फातिमा, डायरेक्टड बाय पार्थो घोष, स्वर बप्पी लहरी, स्टारिंग अभिनेता मुकेश भारती, अभिनेत्री रिचा मुखर्जी, राजेश शर्मा,अतुल श्रीवास्तव,गोविंद नामदेव,अल्का अमीन,संतोष शुक्ला,सोमा राठोड़,विख्यात एक्टर सनी चार्ल्स,ओंकार दास मनिकपुरी, अर्पित भदौरिया,राजीव पांडेय, एस०एम०नूर मक़बूल (फाइट मास्टर), गुलसन पांडे,एवं अन्य कलाकारों के द्वारा लगातार लखनऊ के पास इटौंजा सीतापुर रोड में शूटिंग हो रही है। यह फ़िल्म एक प्रेम की कहानी पर आधारित नही है बल्कि एक ऐसे शख्स के ऊपर है जोकि फ़िल्म को बहुत ही रोमांचित करेगा, कलाकारों की मानें तो इस फ़िल्म को देखने बाले दर्शक फ़िल्म के ट्विस्ट से बहुत रोमांचित होंगें। आज दिनाँक 16/11/2019 को नायाब टाइम्स के संपादक नायाब अली लखनबी और संजेश कुमार ने सभी मुख्य कलाकारों से अपने अंदाज में मुलाक़ात की। *कृत्य:नायाब टाइम्स*
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*योगी सरकार 49 सरकारी विभागों को खत्म करने की तैयारी में* *सचिवालयमें राज्य सरकार के विभागों की संख्या 93 से घटकर रह जायेगी 44* लखनऊ. उत्तर प्रदेश सरकार जल्द ही सरकारी विभागों की संख्या घटाने का फैसला कर सकती है। विभागों के पुनर्गठन के लिए बनी समिति की सिफारिशों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुछ संशोधनों के साथ मंजूरी दे दी है। पुनर्गठन के तहत सचिवालय पर राज्य सरकार के विभागों की संख्या 93 से घटाकर 44 करने की सिफारिश है। दरअसल, नीति आयोग ने एक समान कार्यपद्धति वाले विभागों के एकीकरण का सुझाव राज्य सरकार को दिया था, जिस पर सरकार ने कमेटी गठित की थी। अब कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाएगा। सचिवालय स्तर पर राज्य सरकार के विभागों के पुनर्गठन के लिए वरिष्ठ आईएएस संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते शुक्रवार को संस्तुति दे दी थी। समिति की रिपोर्ट का परीक्षण सचिवालय प्रशासन विभाग कर रहा है। परीक्षण के साथ ही इसे कैबिनेट के सामने रखने का प्रस्ताव भी तैयार किया जा रहा है। प्रस्ताव तैयार करने से पूर्व वित्त, न्याय, कार्मिक जैसे विभागों की संस्तुति की जानी है। बताया जाता है कि मंत्रिपरिषद की अगली बैठक में इस प्रस्ताव को रखा जाएगा। वहीं विभाग के एकीकरण को लेकर आ रही खबरों पर अधिकारियों और कर्मचारियों के सामने नया संकट खड़ा हो गया है। उनके सामने संशय की स्थित बन रही है। *इन विभागों को किया जाएगा एक* एक समान कार्यपद्धति वाले विभागों को मिलाकर एक करने की सिफारिश है। मर्जर के बाद ऐसे विभागों की संख्या 27 रखने की सिफारिश की बातें सामने आ रही हैं। जैसे- लघु सिंचाई एवं भूगर्भ जल और परती भूमि विकास को मिलाकर एक करना। पशुधन, मत्स्य व दुग्ध विकास का विलय। ग्राम्य विकास, समग्र ग्राम्य विकास, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा तथा पंचायती राज का विलय। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग तथा निर्यात प्रोत्साहन, खादी एवं ग्रामोद्योग, हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग को एक साथ किया जाना। अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास, निजी पूंजी निवेश, एनआरआई तथा मुद्रण एवं लेखन सामग्री विभाग का विलय। आईटी एवं इलेक्ट्रानिक्स और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का एक किया जाना। राज्य संपत्ति, नागरिक उड्डयन और प्रोटोकॉल का विलय। नगर विकास, नगरीय रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन तथा आवास एवं शहरी नियोजन का एकीकरण। व्यवसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास, उच्च शिक्षा, प्राविधिक शिक्षा तथा सेवायोजन का विलय। पर्यटन, संस्कृति, भाषा और धर्मार्थ कार्य को मिलाकर एक विभाग बढनाने का फैसला सरकार ले सकती है। *इन विभागों से नहीं होगी छेड़छाड़* चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास, सिंचाई एवं जल संसाधन, राजस्व, भूतत्व एवं खनिजकर्म, लोक निर्माण, परिवहन, चिकित्सा स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण, वित्त स्टांप एवं पंजीकरण, सूचना, आबकारी, सार्वजनिक उद्यम, निर्वाचन, सचिवालय प्रशासन, संसदीय कार्य को यथावत रखे जाने की बातें सामने आ रही हैं। इस तरह के करीब 17 विभागों को विलय की परिधि से बाहर रखे जाने की जानकारी है। *आयुक्त के तीन पद बढ़ेंगे* समिति ने समान कार्य पद्धति वाले विभागों के विलय की सिफारिश की है। बताया जाता है कि शासन स्तर पर आयुक्त के 6 पद प्रस्तावित किए गए हैं। वर्तमान में आयुक्त के 3 पद ही हैं। सिफारिश लागू होने पर शासन स्तर पर शिक्षा आयुक्त, स्वास्थ्य आयुक्त और राज्य संसाधन आयुक्त के 3 पद बढ़ जाएंगे। श्रम और खाद्य एवं रसद विभाग के क्षेत्राधिकार में कटौती की सिफारिश है। *फैसलों में आएगी तेजी* विभागों के पुनर्गठन से शासन स्तर पर होने वाले फैसले तेजी से लिए जा सकेंगे। विभागों की संख्या कम होने पर अपर मुख्य सचिव के अधिकारी विभागों के मुखिया होंगे। जनहित से जुड़े फैसले लेने में सरकार को फाइलों को कई स्तर पर नहीं दौड़ाना पड़ेगा। शासन के कार्यों में पारदर्शिता भी आएगी। इसके साथ ही मंत्रियों के विभागों में भी बदलाव होना तय माना जा रहा है।
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