देशमुख की जबानी मेवात की दास्तां: 🌙 ___मरकज़ निजामुद्दीन;ऐतिहासिक पृष्ठभूमि--* ----------------***----------------- सन् 1855ई0 में तबलीग़ी जमात के संस्थापक मौलाना मुहम्मद इल्यास (रह0) के अब्बा जान(पिता जी) मौलाना इस्माइल साहब, इलाहीबक्श के बच्चों को पढ़ाने के लिए कांधला से दिल्ली आए। इलाहीबक्श, बादशाह बहादुर शाह जफर के निजी चिकित्सक व समधि थे। ये वही इलाहीबक्श है जिसने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के लिए जासूसी की और किले के बहुत महत्वपूर्ण सूचनाएं अंग्रेजों तक पहुँचाई। यही नहीं बादशाह बहादुर शाह जफर को भी इसी ने गिरफ्तार करवाया था। जैसाकि होता है। 1857 की क्रांति की विफलता के बाद ,इलाहीबक्श भी अपराध बोध का शिकार हो गया और परेशान रहने लगा। काफी दिनों बाद इन्होंने अपनी परेशानी मौलाना मुहम्मद इस्माइल साहब को बताई। मौलाना ने उनका रूहानी इलाज किया,जिससे इलाहीबक्श को दिमागी सुकून मिला। इसके बाद इलाहीबक्श ने दिल्ली छोड़ दी और निजामुद्दीन आकर रहने लगे। यहाँ उन्होंने एक आलीशान बंगला बनवाया और उसके पास ही एक मस्जिद बनवाई, जो आगे चलकर बंगले वाली मस्जिद कहलाई। मस्जिद के साथ ही एक हुजरा बनवाया और मौलाना मुहम्मद इस्माइल को साहब मरहूम को मस्जिद की इमामत का जिम्मा सौंपा गया। उस समय मेवात से दिल्ली जाने के लिए पैदल का रास्ता वाया धौज व निजामुद्दीन था। मेवाती इसी रास्ते से मजदूरी करने दिल्ली जाते थे। मस्जिद के सामने मीठे पानी का कुआँ था। जहाँ मेवाती अपने साथ लाया खाना खाते , दोपहरी में पेड़ों के नीचे आराम करते और दिल्ली की ओर चल देते। एक दिन मौलाना इस्माइल अकेले थे। उन्होंने ज़ोहर की आज़ान दी और जमात के लिए किसी दूसरे आदमी का इन्तज़ार करने लगे। उल्लेखनीय है कि उस समय निजामुद्दीन के आस -पास आबादी नहीं थी,बस हजरत निजामुद्दीन औलिया की मजार थी जिसके दक्षिण की ओर दरगाह के खादिमों के मकान थे। बाकी चारों ओर जंगल था। मौलाना साहब आदमी की तलाश में मस्जिद से बाहर निकले तो उन्हें कुछ मेवाती आते हुए दिखाई दिये। मौलाना ने उन्हें रोका और नमाज़ की दावत दी। मगर मेवाती तो नमाज़ जानते ही नहीं थे।-- खैर मौलाना ने उन्हें वजू करवाया और फिर नमाज़ पढ़ाई। नाम के बाद उनसे पूछा, " कहाँ जा रहे हैं?" मेवातियों ने जवाब दिया," दिल्ली मजदूरी करने जा रहे हैं।" यह सुन कर मौलाना ने कहा," अगर तुम्हें मजदूरी यहीं दे दो जाए तो कर लोगे।" मेवातियों ने कहा," हमें तो मजदूरी करनी है, कहीं भी कर लेंगे ।" उस दिन से मौलाना रोजाना उन्हें नमाज़ सिखाते/पढ़ाते और शाम को मजदूरी दे देते। इसी तरह 15-20 दिन गुजर गए। एक दिन मेवातियों ने आपस में सलाह-मशविरा किया। " यार,मौलाना हमारे पास काम भी नहीं कराते और अच्छी-अच्छी बातें भी बताते हैं और मजदूरी भी पूरी देते हैं। यार, मौलाना सू बिना काम मजदूरी लेणो ठीक नांय।" इसके बाद उन्होंने मौलाना से मजदूरी लेने से मना कर दिया और उनसे लिए पैसे भी वापिस कर दिये। कुछ दिन बाद वे मौलाना को मेवात लेकर आए। फिरोजपुर नमक में उनका मुकाम रहा। उसके बाद मेवात कुछ बच्चे पढ़ने के लिए निजामुद्दीन गये। इस तरह बंगले वाली मस्जिद में निजामुद्दीन मदरसे की शुरूआत हुई। मौलाना मुहम्मद इस्माइल साहब की 1898 में वफ़ात हो जाने के बाद उनके बड़े बेटे मौलवी मुहम्मद अहमद ने निजामुद्दीन मदरसे को संभाला। वे भी मेवात आते-जाते रहे। मौलवी मुहम्मद अहमद की वफ़ात 1917 में हुईं। इस समय उनके सबसे छोटे भाई मौलवी मुहम्मद इल्यास साहब, मदरसा मुजाहिर-उल-उलूम,सहारनपुर में मुदर्रिस थे। मौलवी मुहम्मद अहमद की वफ़ात के बाद लोगों ने मौलवी मुहम्मद इल्यास साहब से दरख्वास्त की, कि अब आप अपने बाप और भाई के लगाये हुए पौधे को सींचने के लिए निजामुद्दीन चलें। मौलाना पहले तो तैयार नहीं हुए मगर जब लोगों ने ज्यादा इसरार किया तो आप निजामुद्दीन आ गये। मेवातियों को जब पता चला कि मौलवी इस्माइल साहब के छोटे बेटे निजामुद्दीन आ गये हैं तो वे बहुत खुश हुए और निजामुद्दीन उनसे मिलने पहुँच गये। कुछ दिन बाद मेवातियों ने मौलाना इल्यास साहब से मेवात चलने की दरख्वास्त की। मौलाना ने कहा,"एक शर्त पर मेवात चल सकता हूँ कि मेवात में एक मकतब(मदरसा) खोलने की हाँ करो तो ।" मेवातियों ने हाँ कर दी। उसके बाद मौलाना इल्यास साहब फिरोजपुर नमक आए और आते ही अपनी शर्त याद दिलाई। इसके बाद फिरोजपुर नमक में मेवात के पहले मकतब की स्थापना हुई। उसके बाद इसी सफर में कुल दस मकतब चालू किये गये। इस तरह कुछ ही दिनों में मेवात में सैकड़ों मकतब शुरू हो गई। मौलाना समय-समय पर इन मकतबों की प्रोग्रेस रिपोर्ट लेते। कुछ ही दिनों में मौलाना इस नतीजे पर पहुंचे कि सिर्फ मकतबों से मेवात की जहालत दूर नहीं हो सकती। इसके बाद उन्होंने मेवात का सर्वे कराया तो रिपोर्ट मिली कि मेवात में मस्जिदें बहुत कम हैं और जो हैं वे भी बन्द पड़ी हैं। नमाज तो क्या लोगों को कलमा भी याद नहीं है। लोग गैरइस्लामी परम्पराओं में इस कद्र फंसे हुए हैं कि वे असल इस्लाम से कोसों दूर हैं। इसी दौरान मौलाना के सामने एक नौजवान लाया गया। बताया गया ये लड़का फलां मकतब से फारिग है। उसका लिबास और चेहरा (दाढ़ी-मूंछ) सफा चट किसी तरह भी इस्लामी नहीं था। यह देख मौलाना को बड़ा दुःख हुआ। अब उन्हें यकीन हो गया कि सिर्फ मकतबों से मेवात की जहालत दूर नहीं हो सकती। इसी समय आप सन् 1932 में तीसरे हज के लिए मक्का गये। यहाँ आपको सपना देखा," आपसे काम लेना है।" सुबह उठे तो बहुत चिन्तित थे। आलिमों से तासीर पूछी। आलिमों ने ढाढ़स बंधाया। चिन्ता मत करो। आपसे काम ही लेना है। क्या काम लेना है वे खुद ले लेंगें। हज से वापिस आए,तो एक योजना बनाई। लोगों को मस्जिद तक लाएं और उनसे बात करें। उसके बाद 02 अगस्त, सन्1934 ई0 को नूँह में पूरे मेवात की एक पँचायत बुलाई गई। इस पँचायत में पूरे मेवात से 107 जिम्मेदार लोगों ने शिरकत की। पँचायत की अध्यक्षता मौलाना इल्यास साहब ने की। पँचायत में 15 प्रस्तावों पर सहमति बनी। मुख्य तौर मस्जिदें आबाद करना व नई मस्जिदें तामीर(निर्माण) करना,तालीम का इन्तजाम करना, मेव मर्द व औरतों के गैरशरअई(गैर इस्लामिक) लिबास को बदलना,आपस के झगड़ों को निपटाना, दहेज बन्द करना, दीन की दावत व तबलीग करना इत्यादि। धीरे-धीरे काम शुरू हुआ। तीन नियम बनाए गये। गश्त, नमाज, और तालीम। इसके बाद सन् 1939 में चिल्ले (40 दिन) की पहली जमाअत कांधला और फिर दूसरी जमाअत रायपुर भेजी गई। जमाअतों के लिए छ: बिन्दुओं पर काम करने के लिए जाना तय हुआ 1-कलमा (तौहीद)- कलमा याद करवाना, कलमे का मतलब क्या है और कलमे का महत्व क्या है। 2-नमाज़-नमाज सीखना,नमाज़ क्या है,नमाज़ का हमारे जीवन में महत्व क्या है। 3- हर मोमिन को कम से कम इतना इल्म सीखना चाहिए कि उसे हराम-हलाल ( वैध-अवैध) का ज्ञान हो जाए। 4-इकराम-ए-मुस्लिम-एक मुसलमान कैसा हो। उसका चरित्र, व्यवहार, मामलात व मासरात (लेन-देन) कैसे हों। 5-इखलास-ए-नियत 6-दावत-ए-तबलीग-सभी मुसलमानों को दीन की दावत दी जाए। इस तरह एक योजनाबद्ध तरीके से काम शुरू हुआ। जमाअत में जाने वालों के लिए भी नियम बने। वे मस्जिद में ठहरेंगे अमीर की बात मानेंगे सर नीचा करके चलेंगे धीरे बोलेंगे अपना माल व जान तथा समय लगाएंगे। कोई दुनियावी बात नहीं करेंगे। इस तरह जमाअत के लोग सिर्फ जमीन से नीचे (कब्र) की और आसमान से ऊपर (जन्नत-जहन्नुम) ही बात करते हैं। सियासत,साम्प्रदायिकता और संकीर्णता से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। शुरूआत में समाज सुधार पर काफी जोर दिया गया था। लोगों के आपसी झगडों को सुलझाना,बिना दहेज की शादियाँ करवाना,जिनका निकाह जलसों में हजरत जी खुद पढ़ाते थे इत्यादि। तबलीग ने न केवल अर्धसभ्य मेवों को सभ्य बनाया बल्कि उन्हें वास्तविक इस्लाम से रूबरू कराया और पूरी दुनिया में मेवात की एक नई पहचान कायम हुई। आपकी दुआओं का तालिब हकीम रियाज अहमद देशमुख.✍️


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दिव्य ओझा उप जिला मजिस्ट्रेट बनी: दिव्या ओझा बनी "आईएएस" को उप जिलाधिकारी रायबरेली के पद पर योगी आदित्यनाथ सरकार ने नियुक्त कर एक नई दिशा दी है। "माहे रमज़ान मुबारक महीने के नवे रोज़े की तहेदिल से मुबारकबाद" 'घरों में इबाबत करें जो आप और मुल्क व अवाम के लिए बेहतर है' आज का दिन "मृत्यु लोक के ईस्वर स्वरूप" चिकित्सको व उनके स्टाफ़ एवं पुलिस कर्मियों,सफाई कर्मी व *लॉक डाउन* में डियूटी पर मुस्तेद कर्मचारियों के नाम......! "17 मई 2020 तक "लॉक डाउन" तथा तीनो *गाईड लाइन* 1- रेड जोन के जिले 2-ऑरेंज जोन 3-ग्रीन जोन : का पालन देश प्रदेश वासी अपने घरों में शांतिपूर्ण नियम से कर सुरक्षित रहे और दूसरों को भी रहने की सलाह दे । ताकि *कोरोना महामारी* की जंग में विजय प्राप्ती हो। जय हिन्द जय भारत.....! कृत्य:नायाब टाइम्स *हार्दिक शुभकामनाओ के साथ बधाई*
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मुत्यु लोक का सच:*आचार्य रजनीश* (१) जब मेरी मृत्यु होगी तो आप मेरे रिश्तेदारों से मिलने आएंगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो अभी आ जाओ ना मुझ से मिलने। (२) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरे सारे गुनाह माफ कर देंगे, जिसका मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो आज ही माफ कर दो ना। (३) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरी कद्र करेंगे और मेरे बारे में अच्छी बातें कहेंगे, जिसे मैं नहीं सुन सकूँगा, तो अभी कहे दो ना। (४) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आपको लगेगा कि इस इन्सान के साथ और वक़्त बिताया होता तो अच्छा होता, तो आज ही आओ ना। इसीलिए कहता हूं कि इन्तजार मत करो, इन्तजार करने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है। इस लिये मिलते रहो, माफ कर दो, या माफी माँग लो। *मन "ख्वाईशों" मे अटका रहा* *और* *जिन्दगी हमें "जी "कर चली गई.*
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अति दुःखद: *पूर्व विधायक आशा किशोर के पति का निधन* रायबरेली,सलोन विधान सभा के समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक आशा किशोर के पति श्याम किशोर की लंबी बीमारी के बाद लखनऊ के एक अस्पताल में निधन हो गया।इनकी उम्र लगभग 70 वर्ष की थी और पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। स्व श्याम किशोर अपने पीछे पत्नी आशा किशोर सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गए है। श्याम किशोर की अंत्येष्टि पैतृक गांव सुखठा, दीन शाहगौरा में किया गया।इस अवसर पर सपा के वरिष्ठ नेता रामबहादुर यादव, विधायक डॉ मनोज कुमार पांडे, आरपी यादव, भाजपा सलोन विधायक दल बहादुर कोरी, राम सजीवन यादव, जगेश्वर यादव, राजेंद्र यादव,अखिलेश यादव राहुल निर्मल आदि ने पहुंचकर शोक संतृप्त परिवार को ढांढस बंधाया। कृत्य:नायाब टाइम्स
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पराली न जलाए: *पराली और कृषि अपशिष्ट आदि सहित फसलों के ठंडल भी न जलाये अन्यथा होगी दण्डात्मक कार्यवाही:वैभव श्रीवास्तव* रायबरेली,जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव ने मा0 राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा फसल अवशेष/पराली जलाने को दण्डनीय अपराध घोषित करने की सूचना के बाद भी जनपद के कुछ किसानों द्वारा पराली जलाने की अप्रिय घटनाए घटित की जा रही है, जिसके क्रम में उत्तर प्रदेश शासन के साथ ही मा0 उच्चतम न्यायालय एवं मा0 हरित न्यायालयकरण (एन0जी0टी0) द्वारा कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिये गये है, जनपद के समस्त कृषकों एवं जनपदवासी पराली (फसल अवशेष) या किसी भी तरह का कूड़ा, जलाने की घटनाये ग्रामीण एंव नगरी क्षेत्र घटित होती है तो ऐसे व्यक्तियों के विरूद्ध आर्थिक दण्ड एवं विधिक कार्यवाही के साथ ही उनकों देय समस्त शासकीय सुविधाओं एवं अनुदान समाप्त करते हुए यदि वे किसी विशेष लाइसेंस (निबन्धन) के धारक है तो उसे भी समाप्त किया जायेगा और ग्राम पंचायत निर्वाचन हेतु अदेय प्रमाण पत्र भी नही दिया जायेगा। इसके साथ ही घटित घटनाओं से सम्बन्धित ग्राम प्रधान, राजस्वकर्मी, लेखपाल, ग्राम पंचायत अधिकारी एवं ग्राम विकास अधिकारी तथा कृषि विभाग के कर्मचारी एवं पुलिस विभाग से सम्बन्धित हल्का प्रभारी के विरूद्ध कठोर दण्डात्मक कार्यवाही की जायेगी। मा0 राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश में कृषि अपशिष्ट को जलाये जाने वाले व्यक्ति के विरूद्ध नियमानुसार अर्थदण्ड अधिरोपित किये जाने के निर्देश है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत पारित उक्त आदेशों का अनुपालन अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा इसी अधिनियम की धारा 24 के अन्तर्गत आरोपित क्षतिपूर्ति की वसूली और धारा-26 के अन्तर्गत उल्लघंन की पुनरावित्त होने पर करावास एवं अर्थदण्ड आरोपित किया जाना प्राविधनित है एवं एक्ट संख्या 14/1981 की धारा 19 के अन्तर्गत अभियोजन की कार्यवाही कर नियमानुसार कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित कराया जायेगा। उक्त आदेश के अनुपालन में लेखपाल द्वारा क्षतिपूर्ति की वसूली की धनराशि सम्ब.न्धित से भू-राजस्व के बकाया की भांति की जायेगी। ग्राम सभा की बैठक में पराली प्रबन्धन एवं पराली एवं कृषि अपशिष्ट जैसे गन्ने की पत्ती/गन्ना, जलाने पर लगने वाले अर्थदण्ड एवं विधिक कार्यवाही के बारे में बताया कि कोई भी व्यक्ति कृषि अपशिष्ट को नही जलायेगा तथा कृषि अपशिष्ट जलाने पर तत्काल सम्बन्धित थाने पर सूचना दी जायेगी एवं आर्थिक दण्ड विधिक कार्यवाही करायी जायेगी। जिलाधिकारी ने कहा है कि किसान पराली व कृषि अपशिष्ट जैसे गन्ने की सूखी पत्ती या फसलों के डंठल इत्यादि न जलायें। पराली और कृषि अपशिष्ट न जलाने पर तहसील व विकास खण्ड, ग्राम स्तरों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाकर आम आदमी को जागरूक भी किया जाये। उन्होंने कहा कि पराली जलाने पर पूरी तरह से शासन द्वारा पाबंदी लगाई गई है। शासन के निर्देशानुसार जनपद में पराली जाने पर कड़ी से अनुपालन भी कराया जा रहा है। कृत्य:नायाब टाइम्स *अस्लामु अलैकुम/शुभरात्रि*
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*--1918 में पहली बार इस्तेमाल हुआ ''हिन्दू'' शब्द !--* *तुलसीदास(1511ई०-1623ई०)(सम्वत 1568वि०-1680वि०)ने रामचरित मानस मुगलकाल में लिखी,पर मुगलों की बुराई में एक भी चौपाई नहीं लिखी क्यों ?* *क्या उस समय हिन्दू मुसलमान का मामला नहीं था ?* *हाँ,उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था क्योंकि उस समय हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं था।* *तो फिर उस समय कौनसा धर्म था ?* *उस समय ब्राह्मण धर्म था और ब्राह्मण मुगलों के साथ मिलजुल कर रहते थे,यहाँ तक कि आपस में रिश्तेदार बनकर भारत पर राज कर रहे थे,उस समय वर्ण व्यवस्था थी।तब कोई हिन्दू के नाम से नहीं जाति के नाम से पहचाना जाता था।वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य से नीचे शूद्र था सभी अधिकार से वंचित,जिसका कार्य सिर्फ सेवा करना था,मतलब सीधे शब्दों में गुलाम था।* *तो फिर हिन्दू नाम का धर्म कब से आया ?* *ब्राह्मण धर्म का नया नाम हिन्दू तब आया जब वयस्क मताधिकार का मामला आया,जब इंग्लैंड में वयस्क मताधिकार का कानून लागू हुआ और इसको भारत में भी लागू करने की बात हुई।* *इसी पर ब्राह्मण तिलक बोला था,"क्या ये तेली, तम्बोली,कुणभठ संसद में जाकर हल चलायेंगे,तेल बेचेंगे ? इसलिए स्वराज इनका नहीं मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है यानि ब्राह्मणों का। हिन्दू शब्द का प्रयोग पहली बार 1918 में इस्तेमाल किया गया।* *तो ब्राह्मण धर्म खतरे में क्यों पड़ा ?* *क्योंकि भारत में उस समय अँग्रेजों का राज था,वहाँ वयस्क मताधिकार लागू हुआ तो फिर भारत में तो होना ही था।* *ब्राह्मण की संख्या 3.5% हैं,अल्पसंख्यक हैं तो राज कैसे करेंगे ?* *ब्राह्मण धर्म के सारे ग्रंथ शूद्रों के विरोध में,मतलब हक-अधिकार छीनने के लिए,शूद्रों की मानसिकता बदलने के लिए षड़यंत्र का रूप दिया गया।* *आज का OBC ही ब्राह्मण धर्म का शूद्र है। SC (अनुसूचित जाति) के लोगों को तो अछूत घोषित करके वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा गया था।* *ST (अनुसूचित जनजाति) के लोग तो जंगलों में थे उनसे ब्राह्मण धर्म को क्या खतरा ? ST को तो विदेशी आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता संघर्ष के समय से ही जंगलों में जाकर रहने पर मजबूर किया उनको वनवासी कह दिया।* *ब्राह्मणों ने षड़यंत्र से हिन्दू शब्द का इस्तेमाल किया जिससे सबको को समानता का अहसास हो लेकिन ब्राह्मणों ने समाज में व्यवस्था ब्राह्मण धर्म की ही रखी।जिसमें जातियाँ हैं,ये जातियाँ ही ब्राह्मण धर्म का प्राण तत्व हैं, इनके बिना ब्राह्मण का वर्चस्व खत्म हो जायेगा।* *इसलिए तुलसीदास ने मुसलमानों के विरोध में नहीं शूद्रों के विरोध में शूद्रों को गुलाम बनाए रखने के लिए लिखा !* *"ढोल गंवार शूद्र पशु नारी।ये सब ताड़न के अधिकारी।।"* *अब जब मुगल चले गये,देश में OBC-SC के लोग ब्राह्मण धर्म के विरोध में ब्राह्मण धर्म के अन्याय अत्याचार से दुखी होकर इस्लाम अपना लिया था* *तो अब ब्राह्मण अगर मुसलमानों के विरोध में जाकर षड्यंत्र नहीं करेगा तो OBC,ST,SC के लोगों को प्रतिक्रिया से हिन्दू बनाकर,बहुसंख्यक लोगों का हिन्दू के नाम पर ध्रुवीकरण करके अल्पसंख्यक ब्राह्मण बहुसंख्यक बनकर राज कैसे करेगा ?* *52% OBC का भारत पर शासन होना चाहिये था क्योंकि OBC यहाँ पर अधिक तादात में है लेकिन यहीं वर्ग ब्राह्मण का सबसे बड़ा गुलाम भी है। यहीं इस धर्म का सुरक्षाबल बना हुआ है,यदि गलती से भी किसी ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई तो यहीं OBC ब्राह्मणवाद को बचाने आ जाता है और वह आवाज़ हमेशा के लिये खामोश कर दी जाती है।* *यदि भारत में ब्राह्मण शासन व ब्राह्मण राज़ कायम है तो उसका जिम्मेदार केवल और केवल OBC है क्योंकि बिना OBC सपोर्ट के ब्राह्मण यहाँ कुछ नही कर सकता।* *OBC को यह मालूम ही नही कि उसका किस तरह ब्राह्मण उपयोग कर रहा है, साथ ही साथ ST-SC व अल्पसंख्यक लोगों में मूल इतिहास के प्रति अज्ञानता व उनके अन्दर समाया पाखण्ड अंधविश्वास भी कम जिम्मेदार नही है।* *ब्राह्मणों ने आज हिन्दू मुसलमान समस्या देश में इसलिये खड़ी की है कि तथाकथित हिन्दू (OBC,ST,SC) अपने ही धर्म परिवर्तित भाई मुसलमान,ईसाई से लड़ें,मरें क्योंकि दोनों ओर कोई भी मरे फायदा ब्राह्मणों को ही हैं।* *क्या कभी आपने सुना है कि किसी दंगे में कोई ब्राह्मण मरा हो ? जहर घोलनें वाले कभी जहर नहीं पीते हैं।*
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