महामारी में काम भगवान स्वरूप ये डॉक्टर्स: आज का दिन हमारे तेजतर्रार अनुभवी कर्मठ डॉक्टरों के नाम जिनकी निगरानी में हमसब सुरक्षा के घेरे में है और ईश्वर के बाद *मृत्यु लोक पर इस महामारी के दिनों में 2020 वर्ष में भगवान स्वरूप इन्हें देख रहे है* जो उत्तर प्रदेश के चिकित्सकों में एक है डॉ०आशुतोष कुमार दुबे, डॉ०डी०एस०राठौर,डॉ०प्रवीण प्रधान, डॉ०मनीषा लाल,डॉ०पी०के०सिंघानियां, डॉ०दीपक कुमार, डॉ०सन्तोष यादव,डॉ०अनिल कुमार चौधरी,डॉ०उज़मा,डॉ०अर्पित गुप्ता। डॉ०वी०के०दुब,डॉ०जी०एस०तिवारी,डॉ०ए०के०सिंह,डॉ०एच०के०तिवारी,डॉ०अनिल रत्न त्रिपाठी,डॉ०बी०पी०चौरसिया,डॉ०अल्ताफ हुसैन, डॉ०एस०सी०श्रीवास्तव, डॉ०आर०के०मिश्रा,डॉ०अरूण कुमार सिंह,डॉ०एन०के०श्रीवास्तव,डॉ०राजीव चौधरी,डॉ०जय सिंह,डॉ०यू०पी०सिंह,डॉ०आर०बी०वर्मा,डॉ०मुम्मताज अहमद,डॉ०एन०एन०पान्डेय, डॉ०अनिल कुमार पान्डेय,डॉ०सुनील कुमार तिवारी,डॉ०असगर अली। डॉ०रेनु चौधरी, डॉ०सुनीता सिंह,डॉ०गौरी गौड़,डॉ०बीरबल,डॉ०एम०नासिर, डॉ वी०के०दुबे,डॉ०अनिल रत्न त्रिपाठी,डॉ०आर०के०मिश्रा,डॉ०राजेश वर्मा,डॉ०बेला रानी वर्मा, डॉ०यू०पी०सिंह,डॉ०अनिल कुमार मेहरोत्रा, डॉ०वी०वी०त्रिपाठी,डॉ०एस०के०शंखवार, डॉ०गुफरान, डॉ०मज़हर, डॉ०जया भिवानी,डॉ०अजय पाल । कृत्य:नायाब टाइम्स
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मुत्यु लोक का सच:*आचार्य रजनीश* (१) जब मेरी मृत्यु होगी तो आप मेरे रिश्तेदारों से मिलने आएंगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो अभी आ जाओ ना मुझ से मिलने। (२) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरे सारे गुनाह माफ कर देंगे, जिसका मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो आज ही माफ कर दो ना। (३) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरी कद्र करेंगे और मेरे बारे में अच्छी बातें कहेंगे, जिसे मैं नहीं सुन सकूँगा, तो अभी कहे दो ना। (४) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आपको लगेगा कि इस इन्सान के साथ और वक़्त बिताया होता तो अच्छा होता, तो आज ही आओ ना। इसीलिए कहता हूं कि इन्तजार मत करो, इन्तजार करने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है। इस लिये मिलते रहो, माफ कर दो, या माफी माँग लो। *मन "ख्वाईशों" मे अटका रहा* *और* *जिन्दगी हमें "जी "कर चली गई.*
• नायाब अली
यौमे पैदाइश की मुबारकबाद आरिज़: *"यौमे पैदाइश"1,अक्टूबर 2020 के मौके पर आरिज़ अली को तहेदिल से मुबारकबाद* रायबरेली,आज हमारे पौत्र आरिज़ अली पुत्र नौशाद अली के योमे पैदाइश का दिन 1अक्टूबर 2020 है । जिसकी खुशी में उसे तहेदिल से *मुबारकबाद* "हैप्पी बर्थडे" आरिज़ अली । दोस्तो आप सब गुजरीस है के आप उसको अपनी दुवाओ से भी नवाज़े। *हैप्पी बर्थडे* आरिज़ अली....!🎂💐 नायाब अली लखनवी सम्पादक "नायाब टाइम्स" *अस्लामु अलैकुम/शुभप्रभात* हैप्पी गुरुवार
• नायाब अली
Mom:कृपया इस तस्वीर को पवित्र नजर से देखें, हवस की नजर से नहीं। इस तस्वीर में एक बहुत ही सुंदर संदेश छिपा है, जिसका वर्णन लेखक ने बड़ी ही खूबसूरती से किया है। कृपया पढिए और अपने विचार जरूर व्यक्त करें। #औरत_एक_माँ तस्वीर कहां की है और किसने ली ??? मुझे नहीं मालूम ! लेकिन इस तस्वीर मे दिखने वाली औरत की दशा बता रही है की वह निश्चित रूप से किसी जंगली जनजाति की ही होगी ! क्योंकि सभ्य होने का ढ़ोंग करने वाला आधुनिक समाज में इतना साहस बिल्कुल भी नहीं है की वह अपनी छाती का दूध किसी अन्य जीव को भी पिला सके ??? सभ्य होने के नाटक और बाजारीकरण ने खुद बच्चों से उनकी माओं का दूध छिन लिया है , वह और किसी जीव को तो दूध बाद में पिलायेगीं ??? अब आधुनिक माँ अपने बच्चो को दूध मात्र इस ड़र से नही पिलाती कही उसका फ़िगर खराब ना हो जाये ??? अब शिशु बाजार मे आ रहे डिब्बा बंद दूध पर पल रहे है और जो प्रकृति ने उसके लिये आहार प्रदान किया था वह बाजारवाद ने उससे दूर कर दिया है ! दूध तो दूध इस आधुनिक सभ्य समाज मे अब बच्चा अपनी माँ की गोद के लिए भी तरसता है ??? बाजारीकरण के इस भागम भाग दौर मे भावनाएं कुंद हो चुकी है जिसमे अक्सर गोद मे अपने बच्चे को आधुनिक माँ इस लिये नही लेती कही उसका मेकअप खराब ना हो जाये ??? प्रकृति ने प्रेम और दया करूणा का भाव पुरूषो के मुकाबले स्त्रीयो मे अधिक भरा है , यही कारण है की संसार भर की मादाएं नर के मुकाबले अपने बच्चो की देखभाल बहुत अच्छी तरह करती है ! स्वंय प्रकृति ने मादाओ को शिशुओ की देखभाल का जिम्मा दे रखा है ! लेकिन सभ्य होने के नकली नाटक ने स्त्रीयो के अन्दर के वात्सल्य को मार दिया है और इसका प्रभाव समाज पर पड़ेगां जिस दिन स्त्रीयो के अन्दर से प्रेम और वात्सल्य खत्म हो जायेगां उस दिन आने वाली पीढ़यो के अन्दर सिर्फ नफरत ही बचेगीं ! हमारे नकली विज्ञान नकली सभ्यता से कही बेहतर है यह प्रकृति को समझने वाले नंग धड़ंग लोग ! #कॉपी 🙏🙏
• नायाब अली
विख्यात शायर: रायबरेली, मिर्तुलोक के जाने माने मारूफ शायर, मुनव्वर राना साहब के कूल्हे की हड्डी में फ्रैक्चर, AIIMS, Delhi में एडमिट किए गए हैं. Thursday(बृहस्पतिवार, जुमेरात) को ऑपरेशन है. आप सभी अहबाब से उनकी रिकवरी की दुआ के लिए मोदबाना दरख़्वास्त है। कृत्य : नायाब टाइम्स
• नायाब अली
प्राइवेट व सरकारी स्कूलों में: *वसूली प्राइवेट स्कूलों द्वारा अभिभावकों से सरकारी स्कूलों में मुँह बन्दी सुविधा* "योगेंद्र सिंह" उत्तर प्रदेश:पिछले कुछ दिनों से प्राइवेट स्कूलों की फी वसूली का मुद्दा चर्चा में है। सच पूछिए तो आजादी के बाद सबसे अधिक पतन शिक्षा व्यवस्था का ही हुआ है। प्राइवेट स्कूल पैसा वसूली के अड्डे बन गए हैं, और सरकारी स्कूल अवैध बटवारे के... पढ़ाई लिखाई तो खैर जो है सो हइये है। प्राइवेट स्कूल अब विद्यालय नहीं मॉल हो गए हैं। वहाँ किताबें बिकती हैं, कपड़े बिकते हैं, जूते बिकते हैं, मोजे बिकते हैं, मॉल बिकते हैं, ट्यूशन के मास्टर बिकते हैं, कुछ स्कूलों में धर्म भी बिकता है, और सबसे अंत में शिक्षा बिकती है। और ये सारे सामान लागत मूल्य से दस गुने मूल्य पर बेचे जाते हैं। सरकारी स्कूल मुफ्त राशन की दुकान हो गए हैं। वहाँ सरकार भोजन बांटती है, कपड़े बांटती है, जूते बांटती है, स्कूल बैग बांटती है, पैसे बांटती है, चुनाव के समय वोट का मूल्य बांटती है, और सबसे अंत में शिक्षा बांटती है। इतना ही नहीं, यह सारी बंदरबांट पहली कक्षा से ही बच्चों को उनकी जाति, उनकी कैटेगरी याद दिला कर की जाती है। फिर वही सरकार बुद्धिजीवियों से पूछती है कि जातिवाद मिट क्यों नहीं रहा? और बुद्धिजीवी दारू की बोतल गटक कर कहते हैं, ब्राह्मणवाद के कारण... लॉकडाउन के दौरान विद्यालय बन्द हुए तो सरकार ने आदेश किया कि मध्याह्न भोजन का पैसा हर बच्चे के खाते में भेज दिया जाय। मतलब बटवारा रुकना नहीं चाहिए। उधर प्राइबेट स्कूल वालों ने कहा कि हम ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं, सो फी जमा कीजिये। मतलब वसूली नहीं रुकेगी... दोनों के मालिक अपने अपने एजेंडे पर डटे हुए हैं। मुझे लगता है कि शिक्षा के क्षेत्र में तो कम से कम नैतिकता होनी ही चाहिए। अगर विद्यालय अनुशासित हो गए तो राष्ट्र का भविष्य अनुशासित हो जाएगा। पर दुर्भाग्य यह है कि यहाँ नैतिकता बिल्कुल भी नहीं है। हर जगह केवल और केवल एजेंडा है। हमारे यहाँ नर्सरी क्लास के बच्चे को स्कूल ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। जिस बच्चे की पोट्टी भी मां धोती है, वह ऑनलाइन पढ़ रहा है। इस ऑन लाइन पढ़ाई का लाभ न बच्चा समझ रहा है, न अभिभावक... बस स्कूल प्रशासन समझ रहा है। प्राइवेट स्कूल वालों का तर्क है कि शिक्षकों का वेतन देना है, सो फी लेना सही है। चलिये छोटे स्कूलों की बात तो समझ आती है, पर वे बड़े स्कूल जिनकी कमाई करोड़ों की है वे क्या तीन महीने का वेतन भी अपने पास से नहीं दे सकते ? वैसे मुझे तो यह भी समझ में नहीं आ रहा कि तीन-चार महीना स्कूल बंद हो जाने से ऐसा क्या बिगड़ जा रहा है जो ऑनलाइन पढ़ाना पड़ रहा है? प्राइवेट स्कूल तो यूँ भी गर्मी छुट्टी के नाम पर दो-दो महीने बन्द रहते हैं। पर नहीं, फीस लेना है तो तेला-बेला करना ही पड़ेगा न! आज देखा कि डीपीएस जैसा बड़ा स्कूल ग्रुप मास्क बेंच रहा है, वह भी 400 रुपये में। यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है। आपको क्या लगता है, ऐसी व्यवस्था में पढ़ कर निकला बच्चा किसी के प्रति निष्ठावान हो सकता है? नहीं! न राष्ट्र के प्रति, न समाज के प्रति, न घर के प्रति... वह बस यही सीखेगा कि जैसे भी हो पैसा कमाना है। किसी भी तरह... वैसे डीपीएस ने अब कहा है कि वह मास्क उसका नहीं है। मास्क न भी हो तब भी किताबों, जूतों आदि के नाम पर लूट कम नहीं होती। वैसे मुझे लगता तो नहीं कि लोग प्राइवेट स्कूलों की इस अनैतिकता का विरोध कर पाएंगे, पर उन्हें करना चाहिए। इस लॉक डाउन पीरियड का फी तो नहीं ही दिया जाना चाहिए। कृत्य:नायाब टाइम्स
• नायाब अली
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नायाब टाइम्स हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र
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