सीतापुर की शख्सियत: *सीतापुर की तारीख़ी शख़्सियत: डा0 सफ़दर आह सीतापुरी- 29 जुलाई को उनके योमे वफ़ात पर ख़िराजे अकीदत का नज़राना* "ख़ुश्तर रहमान खाँ " सीतापुर,कोई भी गगन चुम्बी शानदार इमारत उस वक्त तक कामयाब नहीं हो सकती जब तक उसकी बुनियाद (नींव) करीने से मजबूती देकर ज़मीन के नीचे धँसाई न गई हो। बुनियाद में लगने वाले पत्थर किसी को दिखाई तो नहीं देते, लेकिन शानदार इमारत दीदाजे़ब हो इसके लिये बुनियाद का मज़बूती से अपनी जगह जमे रहना शर्त है। बुनियाद हिली तो शानदार इमारत में शिगाफ़ (दरार) पड़ना तय है और शिगाफ़ पड़ते ही शानदार इमारत की खुबसूरती फीकी पड़ना भी यक़ीनी। ज़हिर है इंसान दुनिया में तब तक किसी काम में कामयाबी हासिल नहीं कर सकता, जब तक उस काम की बुनियाद को मज़बूती न दे दी जाय। भारतीय फ़िल्म जगत आज दुनिया भर में अपने जलवे बिखेर रहा है। दुनिया के हर उस कोने में जहाँ-जहाँ उर्दू-हिन्दी ज़बान बोली और समझी जाती है, भारतीय फ़िल्में और इनके गीत इंसानों की तस्कीन का एक बेहतरीन ज़रिया हैं। दुनिया में बहुत सारे लोग भारतीय फ़िल्मों के गीत गुनगुनाकर अपना ग़म ग़लत करने की कोशिश करते हैं, तो नौजवानों का एक बड़ा तब्क़ा मौज-मस्ती की जिऩ्दगी को खुश्ग्वार बनाने के लिये इन्हीं भारतीय फ़िल्मों के शानदार गीतों और म्युज़िक का सहारा लेता है। भारतीय फ़िल्मों के किरदार और उनका असर अक्सर जा-बजा रूनुमा होने वाले वाक़्यात और हादसात में भी नज़र आ ही जाता है। लेकिन भारतीय फ़िल्मों की शुरूआत करने वाली अज़ीम शख़्यिात से आज के लोग ख़ासकर नौजवान तब्क़ा पूरी तरह अन्जान है। वह अपनी मस्ती में मस्त है। हमारी शानदार विरासत पर गर्द-गुबार तेजी से जमती जा रही है। वह किरदार धँुधला रहे हैं या ख़त्म हो रहे हैं, जिनकी रक्खी नींव पर बनी इमारत पर हम रक्स करते हुए झूम रहे हैं, जश्न मना रहे हैं। सोच कर हैरत होती है कि जब भारत में ख़ामोश (मूक) फ़िल्मों का उदय हुआ होगा तो फ़िल्मकारों के सामने कैसी-कैसी सख़्त दुश्वारियाँ रही होगी, लेकिन उन्होने हिममत नहीं हारी आगे बढ़ते रहे-बढ़ते रहे नतीजा यह कि आज हम दुनिया में उस मुक़ाम पर पहुँच चुके हैं जिसका लोग ख़्वाब देखते-देखते फ़ना हो जाया करते हैं और ख़्वाब पूरा नहीं होता। भारतीय फ़िल्मों की नींव रक्खने में अपनी सलाहियतों का सरमाया खपाने वाले एक अजीम शख़्स का ताअल्लुक़ सीतापुर की सरज़मीं से भी रहा है। यूँ तो अनगिनत लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने कारनामों से सीतापुर की धरती को अज़मत बख़्शी जिनका क़र्ज इस धरती पर हमेशा के लिये क़र्ज़ ही रहेगा, लेकिन अगर फ़िल्मों की बात की जाये तो डा0 सफ़दर आह सीतापुरी की कोई मिसाल अब तक कहीं नज़र नहीं आती। वह न सिर्फ सीतापुर के लिये तारीख़ी शख़्सियत के अलमबरदार हैं। बल्कि उनकी दर्जनांे तसानीफ़ (लेखन कार्य) उर्दू का बेशक़मती ख़ज़ाना है। जो रहती दुनिया तक मिश्अल-ए-राह बनकर हमारी रहनुमाई करता रहेगा। डा0 सफ़़दर आह सीतापुरी की पैदाइश 28 अगस्त 1905 में सीतापुर शहर के मोहल्ला क़जियारा में हुई। इब्तिदाई और रिवायती तालीम सीतापुर में ही हासिल की। शायरी का शौक़ इस क़दर हावी रहा है कि अल्हड़ लड़क्पन में ही शेरी नशिस्तों में कलाम पढ़ने लगे और दाद ओ तहसीन हासिल करते रहे। 1919 में उनका कलाम मैगज़ीन में छपने लगी। 1928 में उन्होने उर्दू हफ़तरोजा (साप्ताहिक) ‘‘हातिफ’’़ शाया (प्रकाशित) किया, 1934 में हिन्दी हफतरोजा ‘‘जनता’’ उन्ही इदारत (सम्पादन) में मंजरे आम हुआ। जमाना गुज़रता रहा डा0 सफ़दर आह का शेरी सफ़र परवान चढ़ता रहा है। एक वक़्त ऐसा आया जब उनकी शेर गोई का चर्चा मुम्बई तक जा पहुँचा उर्दू ड्रामा निगारी में भी उनके नाम को सराहा गया। उस वक़्त बम्बई शहर में फ़िल्में बनाने का काम डारेक्टर महबूब अली खान के निर्देशन में फल-फूल रहा था। फ़िल्म डायरेक्टर महबूब अली खान, डा0 सफ़दर आह सीतापुरी की सलाहियतों के असर से खुद को बचा नहीं पाये। नतीजा महबूब अली खान का बुलावा डा0 सफ़दर तक आ पहुँचा और वह 1935 में सीतापुर से मुम्बई नगरी चल पड़े। कई फिल्मों के डायरेक्शन में महबूब अली खान की मदद करने में कामयाबी डा0 सफ़दर आह की क़िस्मत बनी। फिल्मों में गीत लिखना शुरू किया तो रूकने का नाम नहीं लिया। बहुत सारे गीत लिखे जो सीधे जनता की अवाज़ बनते नज़र आये। 200 से ज़्यादा फिल्मी गीत लिखने का रिकार्ड डा0 सफ़दर आह सीतापुरी के नाम दर्ज है। आज भी उनके लिखे गीत सुनकर अंदाजा होता है, कि उनके दिल में इंसानी हमदार्दी का जज़्बा किस ग़ज़ब का था। डा0 सफ़दर आह के गीतों को के0एल सहगल, हुस्न बाना, लतामंगेश्कर, मुकेश कुमार जैसे गुलूकारों ने आपनी आवाज के जादू से चार-चाँद लगाये। डा0 सफ़दर आह सीतापुरी का 1935 से शुरू हुआ फ़िल्मी सफ़र 1959 तक आब-ओ-ताब के साथ जारी रहा है। फ़िल्में कामयाब होती रही गीत गुनगुनाये जाते रहे, लेकिन डा0 सफ़दर आह को समाज में वह मक़बूलियत नसीब न हुई जो उनका हक़ था। आख़िरकार 1959 में वह वक़्त भी उन्हें देखना पड़ा जब उन्होंनें फिल्म जगत को हमेशा के लिये अल्विदा कह दिया। गोशानशीनीं (एकांतावास) अख़्तियार कर ली। गनेशपुरी मुम्बई में अपने घर को ख़ुद के लिये क़ैद ख़ाने में तब्दील कर दिया, गेरूआ लिबास (पहनावा) धारण कर लिया। उनके चाहने वाले रोज सूरज ढलते ही गनेशपुरी में उनकी कुटिया पर हाजरी देते दरबार लगता, महफिलें सजती और रात ढले डा0 सफ़दर आह फिर तन्हा होकर अपनी ख़ामोश कुटिया में दर्द-ओ-आह भरी रात गुजार देते। यह सिलसिले बरसों चला। लोग बताते हैं कि शाम को सजने वाले उनकी दरबारी महफ़िलों में शिरकत करने के लिये लोग मोटर गाड़ियों पर सवार होकर आते थे। उनके लिये तोहफे लाये जाते थे, लेकिन उनके लिये सब मिट्टी हो चुका था। सिर्फ अदब ही उनका ओढ़ना और बिछौना था। कीमती सामान आने-जाने वाले मद्दाहों में तक़सीम कर देना उनका मामूल बन गया था। 29 जुलाई 1980 को डा0 सफ़दर आह सीतापुरी गनेशपुरी-मुम्बई की अपनी इसी कुटिया में दुनिया को ख़ैरबाद कह कर दारेफ़ानी से कूच कर गए। मरते दम तक सीतापुर से उनकी वालेहाना मोहब्बत क़ायम रही और जब-तब सीतापुर आते-जाते रहे। मुझे यह फख्र हासिल है कि उनके इकलौते बेटे जनाब मोहम्मद अफसर जोकि मार्शल आर्ट के बेहतरीन कलाकार थे, हम सब उन्हें प्यार से अंकल कहते थे, के साथ सैयद मतलूब हैदर साहब के सेण्ट बिलाल स्कूल में दर्स-ओ-तदरीस करने और उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका भी मिला। डा0 सफ़दर आह सीतापुरी ने उर्दू अदब को आहे रसा, आह के सौ शेर, ज़मज़मा, ग़ज़ल पारे, नव-ब-नव, राम चरित मानस, तुलसीदास, मीर और मीरयात, अमीर ख़ुसरो बहैसियत हिन्दी शायर, फ़िरदौसिये हिन्द, प्रेम बानी, लालक़िला, फ़ल्सफाये मीर, क़ौमी ज़बान, तालीम-ए-बालगाँ, गुनाह की धार, शरारे, गुल्बन, बलन्द पाया, एक ब्याज़, अलमदारे कर्बला, तकमीले हिजाह, हिन्दुस्तानी ड्रामा और उर्दू ड्रामा जैसी दर्जनों नायाब किताबें भी विरासत की शक्ल में दी हैं। डा0 सफ़दर आह सीतापुरी पर डा0 ज़रीना सानी ने पीएचडी मुकम्मल की है, तो ख़्वाजा अहमद अब्बास और ख़्वाजा अहमद फ़ारूक़ी ने दर्जनों मक़ाले (लेख) लिखे हैं। फ़िल्म रोटी, अलीबाबा, नज़र, आसरा, मान, प्रार्थना, औरत, भूख, विजय, बहन, लाजवाब, बावरे नैन, पहली नज़र, प्रेम नगर, जीवन साथी, ग़रीब, नैया, बुल-बुल, आदि ऐसी तारीखी फ़िल्में हैं, जो भारतीय फ़िल्म जगत की बुनियाद मानी जा सकती हैं। इन फिल्मों के लिये डा0 सफ़दर आह सीतापुरी की मेहनत और लिखे गीत, डाॅयलाग उसी तरह हमेशा ज़िन्दा रहने वाला कारनामा है, जैसे हीन्दोस्तानी तारीख़ में लालक़िला, कुतुब मीनार, ताजमहल, इण्डिया गेट, भूल-भूलैंया, छोटा इमाम बाड़ा वगैरा-वगैरा। नमूने के तौर पर डा0 सफ़दर आह के चन्द शेर पेशे ख़िदमत हैं ---- दिल जलता है तो जलने दे, आसूँ न बहा फरियाद न कर। तू पर्दानशीं का आशिक़ है, तू नामे वफ़ा बरबाद न कर।। ---- मोहब्बत की बातें न भूली भुलाये, बहुत देर रोय जो तुम याद आये।। ---- मेरा शोलए बग़ावत है गराँ बहा अमानत, मेरे बाद नौजवानो इसे तुम जलाये रखना।। ---- खुद परस्ती में हुआ सर्फ़ मेरा वक़्ते अज़ीज़, और रोना है कि अब तक नहीं खुद को जाना।। ---- मेरी शहनाज़ तेरे इश्क़ की सरमस्ती में, घोल कर तल्ख़िये अइयाम मैं पी जाता था। ये उम्मीदे रूख़े ज़ेबाए उरूसे फ़रदा, ज़िन्दगी सोज़ मय ख़ाम मैं पी जाता था।।
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यमदुतिया के दिन: *क्यों कायस्थ 24 घंटे के लिए नही करते कलम का उपयोग* "मुकुल श्रीवास्तव" स्वर्ग लोक से मृत्यु लोक:- जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी थी कलम !!उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था "परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं यानी किसी भी तरह का का हिसाब - किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ है ?" कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग दीपावली के दिन पूजन के बाद कलम रख देते है और फिर यमदुतिया के दिन कलम- दवात के पूजन के बाद ही उसे उठाते है I इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है ? ऐसे में अपने ही इतिहास से अनभिग्य कायस्थ युवा पीढ़ी इसका कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती है I जब इसकी खोज की गई तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किवदंतियों में मिला I कहते है जब भगवान् राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की व्यवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं I ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I *तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर* (श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) *में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: *कलम दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और *यमदुतिया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है* कहते है तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ही है............✍ कृत्य:नायाब टाइम्स
• नायाब अली
*--1918 में पहली बार इस्तेमाल हुआ ''हिन्दू'' शब्द !--* *तुलसीदास(1511ई०-1623ई०)(सम्वत 1568वि०-1680वि०)ने रामचरित मानस मुगलकाल में लिखी,पर मुगलों की बुराई में एक भी चौपाई नहीं लिखी क्यों ?* *क्या उस समय हिन्दू मुसलमान का मामला नहीं था ?* *हाँ,उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था क्योंकि उस समय हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं था।* *तो फिर उस समय कौनसा धर्म था ?* *उस समय ब्राह्मण धर्म था और ब्राह्मण मुगलों के साथ मिलजुल कर रहते थे,यहाँ तक कि आपस में रिश्तेदार बनकर भारत पर राज कर रहे थे,उस समय वर्ण व्यवस्था थी।तब कोई हिन्दू के नाम से नहीं जाति के नाम से पहचाना जाता था।वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य से नीचे शूद्र था सभी अधिकार से वंचित,जिसका कार्य सिर्फ सेवा करना था,मतलब सीधे शब्दों में गुलाम था।* *तो फिर हिन्दू नाम का धर्म कब से आया ?* *ब्राह्मण धर्म का नया नाम हिन्दू तब आया जब वयस्क मताधिकार का मामला आया,जब इंग्लैंड में वयस्क मताधिकार का कानून लागू हुआ और इसको भारत में भी लागू करने की बात हुई।* *इसी पर ब्राह्मण तिलक बोला था,"क्या ये तेली, तम्बोली,कुणभठ संसद में जाकर हल चलायेंगे,तेल बेचेंगे ? इसलिए स्वराज इनका नहीं मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है यानि ब्राह्मणों का। हिन्दू शब्द का प्रयोग पहली बार 1918 में इस्तेमाल किया गया।* *तो ब्राह्मण धर्म खतरे में क्यों पड़ा ?* *क्योंकि भारत में उस समय अँग्रेजों का राज था,वहाँ वयस्क मताधिकार लागू हुआ तो फिर भारत में तो होना ही था।* *ब्राह्मण की संख्या 3.5% हैं,अल्पसंख्यक हैं तो राज कैसे करेंगे ?* *ब्राह्मण धर्म के सारे ग्रंथ शूद्रों के विरोध में,मतलब हक-अधिकार छीनने के लिए,शूद्रों की मानसिकता बदलने के लिए षड़यंत्र का रूप दिया गया।* *आज का OBC ही ब्राह्मण धर्म का शूद्र है। SC (अनुसूचित जाति) के लोगों को तो अछूत घोषित करके वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा गया था।* *ST (अनुसूचित जनजाति) के लोग तो जंगलों में थे उनसे ब्राह्मण धर्म को क्या खतरा ? ST को तो विदेशी आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता संघर्ष के समय से ही जंगलों में जाकर रहने पर मजबूर किया उनको वनवासी कह दिया।* *ब्राह्मणों ने षड़यंत्र से हिन्दू शब्द का इस्तेमाल किया जिससे सबको को समानता का अहसास हो लेकिन ब्राह्मणों ने समाज में व्यवस्था ब्राह्मण धर्म की ही रखी।जिसमें जातियाँ हैं,ये जातियाँ ही ब्राह्मण धर्म का प्राण तत्व हैं, इनके बिना ब्राह्मण का वर्चस्व खत्म हो जायेगा।* *इसलिए तुलसीदास ने मुसलमानों के विरोध में नहीं शूद्रों के विरोध में शूद्रों को गुलाम बनाए रखने के लिए लिखा !* *"ढोल गंवार शूद्र पशु नारी।ये सब ताड़न के अधिकारी।।"* *अब जब मुगल चले गये,देश में OBC-SC के लोग ब्राह्मण धर्म के विरोध में ब्राह्मण धर्म के अन्याय अत्याचार से दुखी होकर इस्लाम अपना लिया था* *तो अब ब्राह्मण अगर मुसलमानों के विरोध में जाकर षड्यंत्र नहीं करेगा तो OBC,ST,SC के लोगों को प्रतिक्रिया से हिन्दू बनाकर,बहुसंख्यक लोगों का हिन्दू के नाम पर ध्रुवीकरण करके अल्पसंख्यक ब्राह्मण बहुसंख्यक बनकर राज कैसे करेगा ?* *52% OBC का भारत पर शासन होना चाहिये था क्योंकि OBC यहाँ पर अधिक तादात में है लेकिन यहीं वर्ग ब्राह्मण का सबसे बड़ा गुलाम भी है। यहीं इस धर्म का सुरक्षाबल बना हुआ है,यदि गलती से भी किसी ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई तो यहीं OBC ब्राह्मणवाद को बचाने आ जाता है और वह आवाज़ हमेशा के लिये खामोश कर दी जाती है।* *यदि भारत में ब्राह्मण शासन व ब्राह्मण राज़ कायम है तो उसका जिम्मेदार केवल और केवल OBC है क्योंकि बिना OBC सपोर्ट के ब्राह्मण यहाँ कुछ नही कर सकता।* *OBC को यह मालूम ही नही कि उसका किस तरह ब्राह्मण उपयोग कर रहा है, साथ ही साथ ST-SC व अल्पसंख्यक लोगों में मूल इतिहास के प्रति अज्ञानता व उनके अन्दर समाया पाखण्ड अंधविश्वास भी कम जिम्मेदार नही है।* *ब्राह्मणों ने आज हिन्दू मुसलमान समस्या देश में इसलिये खड़ी की है कि तथाकथित हिन्दू (OBC,ST,SC) अपने ही धर्म परिवर्तित भाई मुसलमान,ईसाई से लड़ें,मरें क्योंकि दोनों ओर कोई भी मरे फायदा ब्राह्मणों को ही हैं।* *क्या कभी आपने सुना है कि किसी दंगे में कोई ब्राह्मण मरा हो ? जहर घोलनें वाले कभी जहर नहीं पीते हैं।*
• नायाब अली
मुत्यु लोक का सच:*आचार्य रजनीश* (१) जब मेरी मृत्यु होगी तो आप मेरे रिश्तेदारों से मिलने आएंगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो अभी आ जाओ ना मुझ से मिलने। (२) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरे सारे गुनाह माफ कर देंगे, जिसका मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो आज ही माफ कर दो ना। (३) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरी कद्र करेंगे और मेरे बारे में अच्छी बातें कहेंगे, जिसे मैं नहीं सुन सकूँगा, तो अभी कहे दो ना। (४) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आपको लगेगा कि इस इन्सान के साथ और वक़्त बिताया होता तो अच्छा होता, तो आज ही आओ ना। इसीलिए कहता हूं कि इन्तजार मत करो, इन्तजार करने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है। इस लिये मिलते रहो, माफ कर दो, या माफी माँग लो। *मन "ख्वाईशों" मे अटका रहा* *और* *जिन्दगी हमें "जी "कर चली गई.*
• नायाब अली
Sr. IAS: Nayab Times family congratulating Shri Mukesh Kr Meshram Ji , IAS for becoming commissioner Lucknow. *We are proud of you sir!!!*
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