फ़र्श से अर्श तक खुद को पहचाना: अद्भुत सफलता की कहानी: आदिवासी >> आईएएस 🙏🙏🥰👌 हाय, मैं डॉ। राजेंद्र भारुद हूं। मेरा जन्म सकरी तालुका के सामोडे गाँव में हुआ था। एक भील आदिवासी। मेरे जन्म से पहले मेरे पिता का निधन हो गया था और घर का कोई आदमी नहीं था, इसलिए बोलने के लिए। हम गरीबी में फंस गए थे। फोटो खींचने के लिए भी पैसे नहीं थे और इसलिए आज तक मुझे नहीं पता कि मेरे पिता कैसे दिखते थे। न जमीन, न संपत्ति। हम गन्ने के पत्तों से बनी झोपड़ी में रहते थे। लेकिन मैय (माँ) सख्त सामान से बनी थी और हमारी हालत पर कभी नहीं झुकी थी। उसकी देखभाल करने के लिए उसके दो बेटे थे और इसलिए वह उस ओर काम करने लगी। उसने फूलों से शराब बनाना और बेचना शुरू कर दिया। पुरुष हमारी झोपड़ी में आते थे और शराब का सेवन करते थे। बाद में उसने मुझे बताया कि, एक शिशु के रूप में, कभी-कभी जब मैं रोती थी तो वह मुझे एक ही शराब की दो बूंदें देता था ताकि मैं सो जाऊं। क्योंकि यह व्यवसाय का समय था और वह ग्राहकों को परेशान नहीं करना चाहती थी। जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मैंने ग्राहकों के लिए मूंगफली या ऐसे स्नैक्स प्राप्त करने के लिए काम करना शुरू कर दिया। मैय एक दृढ़निश्चयी महिला थी और उसने सुनिश्चित किया कि हम दोनों स्कूल जाएँ। मैं जिला परिषद् स्कूल जाता था और हालाँकि मेरे पास कोई पेन या किताबें नहीं थीं (खरीदने के लिए पैसे नहीं थे) मुझे पढ़ाई में मज़ा आता था। हम अपने जनजाति / गाँव से स्कूल जाने वाले पहले बच्चे थे और किसी ने भी शिक्षा को कोई महत्व नहीं दिया। एक बार, परीक्षा के दौरान मैं पढ़ रहा था और एक ग्राहक ने मुझे कुछ मूंगफली लेने को कहा और मैंने साफ मना कर दिया। उसने मुझे हँसते हुए कहा 'जैसे कि तुम डॉक्टर या इंजीनियर बनने वाले हो'। मुझे ठेस पहुंचा। लेकिन मय ने उसे यह कहते हुए पीछे हटा दिया कि मैं करूंगा। मैय के आत्मविश्वास ने मुझे पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए एक निश्चित इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प दिया और मैंने यह सब करने का फैसला किया। बाद में मुझे हमारे गाँव से 150 किलोमीटर दूर अक्कलकुवा तालुका में एक और स्कूल में सीबीएसई में दाखिला मिल गया और मुझे आगे की पढ़ाई के लिए वहाँ जाना पड़ा। मुझे छोड़ने के लिए मैय आई थी और हम दोनों बहुत रोए थे क्योंकि घर वापस जाने पर उसने मुझे अलविदा कहा। अपने दम पर होना मुश्किल था लेकिन मुझे महसूस हुआ कि मुझे इस अवसर को बर्बाद नहीं करना चाहिए। इसने मुझे अच्छा बनाने के लिए और अधिक दृढ़ संकल्प दिया, जिससे मैंने कठिन अध्ययन किया और इसके परिणामस्वरूप मुझे 12 वीं में 97% अंक मिले। मुझे मेरिट के आधार पर मुंबई के जी एस मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिला और कई छात्रवृत्तियाँ मिलीं। यह मेरी शिक्षा और छात्रावास की फीस का ख्याल रखता था और माई मुझे अपने विविध खर्चों के लिए कुछ पैसे भेजते थे। उसने अपना शराब का कारोबार जारी रखा क्योंकि हमारे लिए यह आय का एकमात्र स्रोत था। जैसे-जैसे पढ़ाई जारी रही, मैंने यूपीएससी परीक्षाओं के लिए उपस्थित होने का फैसला किया और इसलिए एमबीबीएस के अंतिम वर्ष में, मैं 2 परीक्षाओं के लिए अध्ययन कर रहा था, क्योंकि मेरी इंटर्नशिप जारी थी। जहां तक मै का संबंध है, वह जानती थी कि मैं एक डॉक्टर बनने के लिए अध्ययन कर रही हूं। उसे कुछ और पता नहीं था। यूपीएससी क्या है, या वह परीक्षा क्यों देता है, यह कैसे मदद करेगा आदि सब उसकी छोटी सी दुनिया से परे था। मैं एक कलेक्टर बनना चाहता था और वह तहसीलदार जैसे स्थानीय अधिकारियों के बारे में भी नहीं जानता था। अंत में जैसे ही वर्ष समाप्त हुआ, मेरे पास एक हाथ में एमबीबीएस की डिग्री थी और दूसरे हाथ में यूपीएससी पास करने के परिणाम थे। और जब मैं अपने छोटे से गाँव में घर वापस आया, तो मेरे घर पर स्वागत करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण लोग आए थे। राजनीतिक नेता, जिला कलेक्टर, स्थानीय अधिकारी, सभी मुझे बधाई देने के लिए आ रहे हैं। मय गैर-वादी था और समझ में नहीं आया कि क्या हुआ था। मैंने उसे बताया कि मैं एक डॉक्टर बन गया हूं। वह वास्तव में खुश थी। मैंने उसे यह भी बताया कि मैं दवा का अभ्यास नहीं करूंगा क्योंकि मैं अब कलेक्टर भी बन गया था। वह नहीं जानती थी कि यह क्या है, लेकिन एहसास हुआ कि यह कुछ बड़ा था। वास्तव में किसी भी ग्रामीण को एहसास नहीं हुआ कि इसका क्या मतलब है। हालाँकि वे सभी खुश थे कि 'हमारा राजू' बड़ा हो गया है और कुछ ने मुझे कंडक्टर बनने के लिए बधाई भी दी है! मैं अब जिला कलेक्टर के रूप में नंदुरबार जिले में तैनात हूं और माए अब मेरे साथ हैं। यहाँ बहुत कुछ है क्योंकि यह आदिवासी और आदिवासी आबादी के साथ एक काफी पिछड़ा हुआ जिला है। और मैं उनके विकास के लिए सभी आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए तत्पर हूं। बहुत बार मुझसे पूछा जाता है कि मैं अपने रास्ते की तमाम बाधाओं के बावजूद यहाँ तक कैसे पहुँचा। बचपन से ही यह संघर्ष था। दिन में दो बार खाना बड़ी बात थी। हमारे खिलौने आम के बीज या डंडे थे। नदी में तैरना और पहाड़ियों पर चढ़ना हमने बचपन बिताया। जिसने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाया। मेरे साथ कौन था? मेरी ताकत - माई और स्थानीय लोग, जो सभी समान रूप से गरीब थे। वे भी हमारी तरह भूखे रह गए, उन्होंने भी वही खेल खेला। इसलिए गरीब होने की अवधारणा ने मुझे कभी नहीं छुआ। जब तक मैं पढ़ाई के लिए मुंबई आया। अंतर स्पष्ट था। लेकिन मैंने कभी कुआँ नहीं उखाड़ा या अपनी किस्मत को कोसा। मुझे एहसास हुआ कि अगर मेरी स्थिति या स्थिति को बदलना है, तो मुझे इसे स्वयं करना होगा। और मैंने अध्ययन किया, बहिष्कृत किया, अध्ययन किया। हां, मुझे बहुत याद आया कि सामान्य बच्चे या किशोर जीवन में मिलते हैं, लेकिन मैं अब जो मिला है उसे देखना पसंद करता हूं। एक भील आदिवासी लड़का, राजेंद्र भारुद, 31 साल की उम्र में एक आईएएस अधिकारी, पहली बार जनजाति, मेरा गांव, मेरा क्षेत्र। आज मेरे पास वह सब कुछ है जिसका मैं सपना देख सकता था। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मुझे छोटे से गांव से उठकर इस पद पर आने के बाद मेरे लोगों में एक जागरूकता पैदा हुई कि वे क्या कर सकते हैं या हासिल कर सकते हैं। वह स्वयं एक बहुत बड़ा पुरस्कार है। >>> माधुरी पेठकर_ का साक्षात्कार 🌸🌷💮🌼🌻🌺🥀🌹🏵 मैंने महसूस किया कि यह हमारी स्वतंत्रता के बारे में कहने का सही दिन है .. 74 साल हो गए हैं .. फिर भी हम ऐसी कहानियों को पढ़ रहे हैं .. असली फल इन लोगों तक नहीं पहुंच रहे हैं .. जो वास्तव में इसके लायक हैं .. इस हीरो को यश ....उन्होंने दिखाया है..तो, माध्यम और स्कूल हमारे जीवन को तय नहीं करते..यही कारण है कि हमारे लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्प और हमारी प्रतिबद्धता हमारे जीवन का फैसला करती है .... हैप्पी इंडिपेंडेंस डे कृत्य:नायाब टाइम्स
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मुत्यु लोक का सच:*आचार्य रजनीश* (१) जब मेरी मृत्यु होगी तो आप मेरे रिश्तेदारों से मिलने आएंगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो अभी आ जाओ ना मुझ से मिलने। (२) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरे सारे गुनाह माफ कर देंगे, जिसका मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो आज ही माफ कर दो ना। (३) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरी कद्र करेंगे और मेरे बारे में अच्छी बातें कहेंगे, जिसे मैं नहीं सुन सकूँगा, तो अभी कहे दो ना। (४) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आपको लगेगा कि इस इन्सान के साथ और वक़्त बिताया होता तो अच्छा होता, तो आज ही आओ ना। इसीलिए कहता हूं कि इन्तजार मत करो, इन्तजार करने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है। इस लिये मिलते रहो, माफ कर दो, या माफी माँग लो। *मन "ख्वाईशों" मे अटका रहा* *और* *जिन्दगी हमें "जी "कर चली गई.*
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हैप्पी बर्थडे राधा विष्ट जी: *यौमे पैदाइश की पुरखुलूस मुबारकबाद राधा विष्ट साहेबा को जो "कोरोना वाररिर्स" महामारी के माहौल में जनता की सेवा में सदैव हैं* लखनऊ, *यौमे पैदाइश की पुरजोर मुबारकबाद* राधा बिष्ट डॉ० "फार्मेसिस्ट" प्रभारी राजकीय होम्योपैथी चिकित्सालय (सदर) कैनाल भवन परिसर कैण्ट रोड लखनऊ को हमारी रब से दुआ है कि वो सदैव इस जहांन में लम्बी आयु के साथ सपरिवार स्वस्थ रहे। जो कोरोना वाररिर्स महामारी के माहौल में जनता की सेवा में रहा करती हैं और कोविड-19 से बचाव की दवाओ के साथ साथ कुछ क्षेत्रीय जटिल रोगों की भी दवाओं को परेशान जनता को साथ साथ पर्वत सन्देश के मोहन चन्द्र जोशी "सम्पादक" जानकी पुरम लखनऊ (उ०प्र०) निवासी दवाए प्राप्त करते हुए उनके साथ मनोज कुमार हैं । राधा बिष्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि चिकित्सालय में आनेवाले मरीज़ो को सदैव उनकी समस्या का निराकरण कर उन्हें उचित परामर्श एवं अनुभव के आधार पर दवाए उपलब्ध चिकित्सालय में कराती हैं "हैप्पी बर्थडे राधा विष्ट" जी । कृत्य:नायाब टाइम्स
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मेरी आवाज सुनो मुख्यमंत्री जी: *रोडवेज का संविदा चालकों/परिचालकों की बजह से नाम हुआ रोशन फिर भी उन्ही के बेतन को काटने के हुये तालिबानी आदेश* लखनऊ,रोडवेज की रीढ़ की हड्डी कहे जाने बाले संविदा के चालक/परिचालक जोकि रोडवेज का 85% संचालन करते हैं और हमेशा उन्ही को भरपेट खाने को नही दिया जाता। रोडवेज ने इन्ही कर्मचारियों की वजह से कुंभ मेले मे सबसे ज्यादा संचालित बसों द्वारा गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने में मुख्य भूमिका निभाई थी, और कोविड-19 जैसी भयंकर महामारी के दौरान भी इन्ही की बजह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगीआदित्यनाथ जी ने भी प्रवासियों/श्रमिकों को प्रदेश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर छोड़ने के किये गए अतुलनीय कार्य की वजह से सराहना की गई। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोविड-19 में रोडवेज की संचालित चार्टेड बसों का भुगतान *(साधारण बस 45000 रुपये प्रति बस प्रतिदिन एवं वातानुकूलित बस 56000 रुपये प्रति बस प्रतिदिन)* के हिसाब से रोडवेज को देने के लिए कहा है।फिर भी रोडवेज ने संविदा चालकों/परिचालकों को मात्र संचालित किमी०के द्वारा ही भुगतान करने का तालिबानी एलान किया है। प्राप्त सूचना के आधार पर जैसे कोई क्रू बस डिपो में सुबह 8 बजे उपस्थित हो जाता है और बह बस लेकर सुबह 08:30 बजे तक चारबाग रेलवे स्टेशन पहुंच जाता है,ट्रेन आती है और यात्रियों की एक-एक करके डिटेल नोट करके बैठाये जाने का प्राविधान है, इस दौरान बसों का चारबाग से निकलते-निकलते शाम के03:00 से 04:00 बज जाते थे।माना कि उक्त बस को बहराइच जाना है जिसका लखनऊ से संचालित किमी० 250 किमी० से 300 किमी० है जोकि बस द्वारा जाना-आना 12 घंटे में पूरा होता है। जो क्रू सुबह 8 बजे बस डिपो पहुंचा था बह रात को 03:00 से 04:00 बजे आया, मतलब 20 घंटे की ड्यूटी के मात्र 390 रुपये हुये और रोडवेज को सरकार से मिले 45000 या 56000 हज़ार। इस आदेश का विरोध करते हुए रोडवेज के समस्त संगठनों द्वारा शासन प्रशासन को अवगत भी कराया है तथा कर्मचारियों में बेतन कटने से काफी रोष व्याप्त है। जबकि सरकार द्वारा पहले से जून महीने तक किसी भी कर्मचारी का बेतन न काटने के आदेश जारी किए जा चुके है फिर भी रोडवेज के अधिकारी आदेशों का उल्लंघन करते हुए कर्मचारियों का बेतन काटने के आदेश पारित कर दिए गए है। कृत्य:नायाब टाइम्स
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मदद शमसुद्दीन की: *दुर्घटना में घायल कबाब पराठा का ठेला लगाने वाले शमसुद्दीन के इलाज में मदद* लखनऊ,कोतवाली क्षेत्र गोमती नगर के शमसुद्दीन उम्र लगभग 30 वर्ष गोमती नगर में वैव माल के पास कबाब पराठे का ठेला लगाते हैं,जिनका दिवाली वाले दिन एक्सीडेंट हो गया था पैर में इन्फेक्शन होने के कारण लगभग 3 से 4 इंच गहरे गड्ढे हो गए थे।इससे पहले भी एक दिव्य कोशिश द्वारा सिविल हॉस्पिटल में आर्थोपेडिक सर्जन डॉ अनुभव अग्रवाल को दिखाया गया था लेकिन यह केजीएमयू में इलाज कराना चाह रहे थे वहां से कुछ इलाज में मदद नहीं मिली दोबारा हमें उन्होंने फोन किया। दिनाँक,15 जनवरी 2020 कल इन को लेकर हम लोग शमसुद्दीन को इनके घर से अपनी गाड़ी में लेकर सिविल हॉस्पिटल डॉ अनुभव अग्रवाल ऑर्थोपेडिक सर्जन को दिखाया जहां से इन का ट्रीटमेंट अब आरंभ होगा कल ही शमसुद्दीन के 3 Xरे भी करवाए गए शमसुद्दीन के इलाज की मदद के लिए मेरे रूरल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के अधिशासी अभियंता श्री एकरामुल हक जी द्वारा₹5000 की इलाज हेतु मदद दी गई है बजरंगबली से प्रार्थना है कि शीघ्र इकराम उल हक के पैर के घाव को पूरी तरह भरे जिससे यह पुणे अपना रोजगार कर सके घायल शमसुद्दीन को ठीक होने के उपरांत रोजगार खोलने में सहायता का भी वादा बजरंगबली की कृपा से हमारे द्वारा किया गया है किसी भी वास्तविक सच्ची सेवा की कोशिश है। कृत्य:नायाब टाइम्स
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प्रदेश राज्यपाल का संदेश: जमीन, जल, जंगल और जानवरों के प्रति संवेदनशीलता एवं संतुलन बनाये रखना होगा - राज्यपाल वृक्ष मानव के स्वास्थ्य का सबसे बड़ा रक्षा कवच श्रीमती आनंदीबेन उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने आज राजभवन से चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानुपर द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आयोजित ‘जलवायु परिवर्तन एवं कृषि वानिकी-प्रभाव, निहितार्थ एवं रणनीतियां’ विषयक राष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिये हम सभी को जमीन, जल, जंगल और जानवरों के प्रति संवेदनशीलता एवं संतुलन बनाये रखना होगा। उन्होंने कहा कि अनियोजित विकास और मानव की लालची प्रवृत्ति ने जिस प्रकार प्रकृति का शोषण एवं दोहन किया है, उसी छेड़छाड़ का ही नतीजा कोरोना जैसी महामारी विश्व के सामने है। श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने कहा कि पर्यावरण की समस्या आज पूरे विश्व के लिये चिन्ता का विषय बनी हुई है। इस समस्या से न केवल मानव जीवन प्रभावित हो रहा है, बल्कि यह पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों, वनस्पतियों, वनों, जंगलों, पहाड़ों, नदियों सभी के अस्तित्व के लिये घातक सिद्ध हो रही है। राज्यपाल ने कहा कि जीवन पर्यावरण से अलग नहीं है। पर्यावरण और जीवन एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। शुद्ध पर्यावरण के लिये पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों एवं जीव-जन्तुओं का होना अत्यन्त आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वृक्ष मानव के स्वास्थ्य का सबसे बड़ा रक्षा कवच है। वृक्ष के आसपास रहने से जीवन में मानसिक संतुलन और संतुष्टि मिलती है। राज्यपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर ‘जैव विविधता’ की थीम दी है, जो आज के परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। राज्यपाल ने कहा कि हमारी जैव विविधता जितनी समृद्ध होगी उतना ही सुव्यवस्थित और संतुलित हमारा वातावरण होगा। अलग-अलग प्रकार के पशु-पक्षी, जीव-जन्तु और पेड़-पौधे ही मिलकर मनुष्य की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में सहायता करते हैं। उन्होंने कहा कि हम सभी को इन सभी के प्रति स्नेह और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। उन्हांेेने कहा कि लाॅकडाउन के दौरान नदियों के जल एवं वायुमण्डल में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिला। श्रीमती पटेल ने कहा कि कोरोना संक्रमण काल ने मानव के समक्ष विकराल चुनौतियों को उत्पन्न किया है। इन सभी चुनौतियों पर सामूहिक संकल्प से शीघ्र ही विजय पायी जा सकती है। यदि मानव सभ्यता को बचाना है तो वर्तमान कृषि प्रणाली में कृषि वानिकी, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन सभी को अपनी खेती में बराबर का स्थान देना होगा। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा किसानों को वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम, राष्ट्रीय जल मिशन एवं राष्ट्रीय सौर मिशन आदि योजनाओं की व्यापक जानकारी दी जा रही है। इससे पहले प्रदेश के कृषि मंत्री श्री सूर्य प्रताप शाही ने वेबिनार को सम्बोधित करते हुए कहा कि सृष्टि की रचना के समय से मानव जीवन का पर्यावरण से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष तक शान्ति की प्रार्थना की गयी है। प्रकृति के अति दोहन के कारण ही सभी मानव एवं जीव-जन्तु प्रभावित हुए हैं। जीवन शैली में परिवर्तन लाकर हम पर्यावरण को बचा सकते हैं। उन्होंने कहा कि लाॅकडाउन के काल में उन पशु-पक्षियों का कलरव फिर से सुनने को मिले, जो बरसों से सुनाई नहीं देते थे। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन न करें तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें। उन्होंने कहा कि हमें रासायनिक खादों का प्रयोग कम करके प्राकृतिक एवं जैविक खेती पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस वेबिनार में चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानुपर के कुलपति डाॅo डी.आर. सिंह, विभिन्न संस्थानों के निदेशक, कृषि वैज्ञानिक, शोधार्थी और छात्र-छात्राएं भी आॅनलाइन जुड़े हुए थे।
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