सरदार वल्लभ भाई पटेल जयन्ती: *लौह पुरूष सरदार पटेल की जयन्ती राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनायी गयी..डीएम, सीडीओ ने दिलायी एकता व अखण्डता की शपथ एवं सरदार पटेल का आदर्श जीवन दर्शन आज के आधुनिक युग में पहले से अधिक प्रासंगिक:* रायबरेली,"सू०वि०रा०" दिनाँक 31 अक्टूबर 2020 को जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव ने कलेक्ट्रेट में बचत भवन के सभागार, पुलिस अधीक्षक कार्यालय एवं विकास भवन के सभागार में मुख्य विकास अधिकारी अभिषेक गोयल ने कोविड-19 कोरोना संक्रमण को दृष्टिगत रखते हुए लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयन्ती कार्यक्रम को हर्षोल्लास के साथ मनाया तथा उपस्थित कर्मचारियों को राष्ट्रीय एकता व अखण्डता मजबूत तथा सरदार पटेल सहित महापुरूषों के पद.चिन्हों पर चल देश व समाज के विकास को मजबूत करने की शपथ दिलाई। जिलाधिकारी ने बचत भवन के सभागार में लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के चित्र के अनावरण व माल्यार्पण कर उन्हे श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि सरदार बल्लभ भाई पटेल को सच्ची श्रंद्धाजलि तभी है जब हम सरदार पटेल सहित महान पुरूषों के आदर्शो सिद्धान्तों पर चल कर राष्ट्रीय एकता अखण्डता को मजबूत करे तथा देश व समाज का विकास करें। सरदार पटेल का आदर्श जीवन दर्शन आज के इस आधुनिक युग में पहले से अधिक प्रासंगिक है। जिलाधिकारी व अधिकारियों ने स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 145वीं जयन्ती राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में बचत भवन, विकास भवन, पुलिस अधीक्षक कार्यालय आदि जनपद के सरकारी कार्यालयों में मनायी गयी। सरदार वल्लभ भाई पटेल जयन्ती के अवसर पर उनके चित्र का अनावरण कर पुष्पमाला व श्रद्धासुमन अर्पित कर करते हुए जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव, व मुख्य विकास अधिकारी अभिषेक गोयल ने कहा कि उस समय भारत में अनेकों राज्य बंटे हुए थे। आजादी के बाद उन सबको एक साथ लेकर चलने की बड़ी चुनौती सामने आ रही थी, देश व समाज के खातिर साहसिक फैसले लेना सरदार पटेल के स्वभाव में बसा था। भारत की 563 रियासतों का एकीकरण किया तथा अन्य छोटी-छोटी रियासतों को प्रान्तों में विलीन कर दिया था जो भारत के लिए महत्वपूर्ण कार्य रहा है। जिलाधिकारी ने कहा कि सरदार के हृदय में जन-जन के प्रति प्यार और दयालुता का समुचित भंडार था। किसी की भी दयनीय दशा देख कर उनका हृदय व्याकुल हो उठता था। उन्होने कहा कि सरदार पटेल में दृढ़ इच्छा शक्ति थी, उन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन सादगी के साथ व्यतीत किया। उन्होने देश प्रति स्वतंत्रता आन्दोलन को शिखर तक पहुचाया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उनके सफल नेतृत्व को देखते हुए उन्हे सरदार की उपाधि दी थी। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में अनेक वीरों के नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है क्योकि इन वीरों ने अपने प्राणों की बाजी लगा कर हंसते हंसते देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। देश को परतंत्रता की बेड़ियों को काटने वालो का जब जब नाम लिया जायेगा तब तब लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम सबसे पहले स्मरण किया जाता रहेगा। मुख्य विकास अधिकारी ने विकास भवन के सभागार में सरदार पटेल को स्मरण करते हुए उनसे जुड़ी हुई अनेक घटनाओं का जीवन वृत्त आदि का विस्तार करते हुए कहा कि धन्य है ऐसा देश जहां ऐसे है महान सपूत...। संविधान शिल्पी बाबा साहब डा0 भीम रामजी अम्बेडकर का नाम संविधान निर्माता कमेटी के अध्यक्ष के लिए सरदार पटेल ने प्रस्तावित किया था क्योंकि वो जानते थे कि किस तरह के कार्य को कौन बेहतर कर सकता है। परिणाम स्वरूप आज देश का संविधान विश्व में अपना अलग स्थान रखता है। एडीएम एफआर प्रेम प्रकाश उपाध्याय, एडीएम प्रशासन राम अभिलाष, नगर मजिस्टेªट युगराज सिंह, एडी सूचना प्रमोद कुमार, मुख्य कोषाधिकारी जितेन्द्र सिंह डीडीओ ए0के0 वैश्य, समाज कल्याण अधिकारी प्रेमचन्द्र दुबे/कर्मचारियों ने सरदार पटेल के चित्र पर माल्यापर्ण कर श्रद्धासुमन अर्पित किये। इस अवसर पर जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव व मुख्य विकास अधिकारी अभिषेक गोयल ने सभी कर्मचारियो व अधिकारियो को राष्ट्रीय एकता दिवस की शपथ दिलाते हुए कहा कि- ‘‘मै राष्ट्र की एकता व अखण्डता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए स्वयं को समर्पित करूंगा और अपने देशवासियो के बीच संदेश फैलाने का भरसक प्रयत्न करूंगा। यह शपथ अपने देश की एकता की भावना से ली जा रही है जिसे सरदार बल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शिता एवं कार्यो द्वारा संभव बनाया जा सके। मै अपने देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना योगदान करने का भी सत्यनिष्ठा से संकल्प करता हूँ।’’ उन्होने यह भी कहा कि सरदार पटेल ने कभी भी आदमी-आदमी मे भेद, जाति-वाद, धर्मवाद आदि न कर राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को मजबूती प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन एडीएम ई राम अभिलाष ने किया। इस मौके पर जनपद स्तरीय अधिकारीगण व पत्रकार बन्धु उपस्थित रहे। कृत्य:नायाब टाइम्स


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यमदुतिया के दिन: *क्यों कायस्थ 24 घंटे के लिए नही करते कलम का उपयोग* "मुकुल श्रीवास्तव" स्वर्ग लोक से मृत्यु लोक:- जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी थी कलम !!उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था "परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं यानी किसी भी तरह का का हिसाब - किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ है ?" कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग दीपावली के दिन पूजन के बाद कलम रख देते है और फिर यमदुतिया के दिन कलम- दवात के पूजन के बाद ही उसे उठाते है I इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है ? ऐसे में अपने ही इतिहास से अनभिग्य कायस्थ युवा पीढ़ी इसका कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती है I जब इसकी खोज की गई तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किवदंतियों में मिला I कहते है जब भगवान् राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की व्यवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं I ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I *तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर* (श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) *में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: *कलम दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और *यमदुतिया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है* कहते है तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ही है............✍ कृत्य:नायाब टाइम्स
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*--1918 में पहली बार इस्तेमाल हुआ ''हिन्दू'' शब्द !--* *तुलसीदास(1511ई०-1623ई०)(सम्वत 1568वि०-1680वि०)ने रामचरित मानस मुगलकाल में लिखी,पर मुगलों की बुराई में एक भी चौपाई नहीं लिखी क्यों ?* *क्या उस समय हिन्दू मुसलमान का मामला नहीं था ?* *हाँ,उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था क्योंकि उस समय हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं था।* *तो फिर उस समय कौनसा धर्म था ?* *उस समय ब्राह्मण धर्म था और ब्राह्मण मुगलों के साथ मिलजुल कर रहते थे,यहाँ तक कि आपस में रिश्तेदार बनकर भारत पर राज कर रहे थे,उस समय वर्ण व्यवस्था थी।तब कोई हिन्दू के नाम से नहीं जाति के नाम से पहचाना जाता था।वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य से नीचे शूद्र था सभी अधिकार से वंचित,जिसका कार्य सिर्फ सेवा करना था,मतलब सीधे शब्दों में गुलाम था।* *तो फिर हिन्दू नाम का धर्म कब से आया ?* *ब्राह्मण धर्म का नया नाम हिन्दू तब आया जब वयस्क मताधिकार का मामला आया,जब इंग्लैंड में वयस्क मताधिकार का कानून लागू हुआ और इसको भारत में भी लागू करने की बात हुई।* *इसी पर ब्राह्मण तिलक बोला था,"क्या ये तेली, तम्बोली,कुणभठ संसद में जाकर हल चलायेंगे,तेल बेचेंगे ? इसलिए स्वराज इनका नहीं मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है यानि ब्राह्मणों का। हिन्दू शब्द का प्रयोग पहली बार 1918 में इस्तेमाल किया गया।* *तो ब्राह्मण धर्म खतरे में क्यों पड़ा ?* *क्योंकि भारत में उस समय अँग्रेजों का राज था,वहाँ वयस्क मताधिकार लागू हुआ तो फिर भारत में तो होना ही था।* *ब्राह्मण की संख्या 3.5% हैं,अल्पसंख्यक हैं तो राज कैसे करेंगे ?* *ब्राह्मण धर्म के सारे ग्रंथ शूद्रों के विरोध में,मतलब हक-अधिकार छीनने के लिए,शूद्रों की मानसिकता बदलने के लिए षड़यंत्र का रूप दिया गया।* *आज का OBC ही ब्राह्मण धर्म का शूद्र है। SC (अनुसूचित जाति) के लोगों को तो अछूत घोषित करके वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा गया था।* *ST (अनुसूचित जनजाति) के लोग तो जंगलों में थे उनसे ब्राह्मण धर्म को क्या खतरा ? ST को तो विदेशी आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता संघर्ष के समय से ही जंगलों में जाकर रहने पर मजबूर किया उनको वनवासी कह दिया।* *ब्राह्मणों ने षड़यंत्र से हिन्दू शब्द का इस्तेमाल किया जिससे सबको को समानता का अहसास हो लेकिन ब्राह्मणों ने समाज में व्यवस्था ब्राह्मण धर्म की ही रखी।जिसमें जातियाँ हैं,ये जातियाँ ही ब्राह्मण धर्म का प्राण तत्व हैं, इनके बिना ब्राह्मण का वर्चस्व खत्म हो जायेगा।* *इसलिए तुलसीदास ने मुसलमानों के विरोध में नहीं शूद्रों के विरोध में शूद्रों को गुलाम बनाए रखने के लिए लिखा !* *"ढोल गंवार शूद्र पशु नारी।ये सब ताड़न के अधिकारी।।"* *अब जब मुगल चले गये,देश में OBC-SC के लोग ब्राह्मण धर्म के विरोध में ब्राह्मण धर्म के अन्याय अत्याचार से दुखी होकर इस्लाम अपना लिया था* *तो अब ब्राह्मण अगर मुसलमानों के विरोध में जाकर षड्यंत्र नहीं करेगा तो OBC,ST,SC के लोगों को प्रतिक्रिया से हिन्दू बनाकर,बहुसंख्यक लोगों का हिन्दू के नाम पर ध्रुवीकरण करके अल्पसंख्यक ब्राह्मण बहुसंख्यक बनकर राज कैसे करेगा ?* *52% OBC का भारत पर शासन होना चाहिये था क्योंकि OBC यहाँ पर अधिक तादात में है लेकिन यहीं वर्ग ब्राह्मण का सबसे बड़ा गुलाम भी है। यहीं इस धर्म का सुरक्षाबल बना हुआ है,यदि गलती से भी किसी ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई तो यहीं OBC ब्राह्मणवाद को बचाने आ जाता है और वह आवाज़ हमेशा के लिये खामोश कर दी जाती है।* *यदि भारत में ब्राह्मण शासन व ब्राह्मण राज़ कायम है तो उसका जिम्मेदार केवल और केवल OBC है क्योंकि बिना OBC सपोर्ट के ब्राह्मण यहाँ कुछ नही कर सकता।* *OBC को यह मालूम ही नही कि उसका किस तरह ब्राह्मण उपयोग कर रहा है, साथ ही साथ ST-SC व अल्पसंख्यक लोगों में मूल इतिहास के प्रति अज्ञानता व उनके अन्दर समाया पाखण्ड अंधविश्वास भी कम जिम्मेदार नही है।* *ब्राह्मणों ने आज हिन्दू मुसलमान समस्या देश में इसलिये खड़ी की है कि तथाकथित हिन्दू (OBC,ST,SC) अपने ही धर्म परिवर्तित भाई मुसलमान,ईसाई से लड़ें,मरें क्योंकि दोनों ओर कोई भी मरे फायदा ब्राह्मणों को ही हैं।* *क्या कभी आपने सुना है कि किसी दंगे में कोई ब्राह्मण मरा हो ? जहर घोलनें वाले कभी जहर नहीं पीते हैं।*
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मुत्यु लोक का सच:*आचार्य रजनीश* (१) जब मेरी मृत्यु होगी तो आप मेरे रिश्तेदारों से मिलने आएंगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो अभी आ जाओ ना मुझ से मिलने। (२) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरे सारे गुनाह माफ कर देंगे, जिसका मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो आज ही माफ कर दो ना। (३) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरी कद्र करेंगे और मेरे बारे में अच्छी बातें कहेंगे, जिसे मैं नहीं सुन सकूँगा, तो अभी कहे दो ना। (४) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आपको लगेगा कि इस इन्सान के साथ और वक़्त बिताया होता तो अच्छा होता, तो आज ही आओ ना। इसीलिए कहता हूं कि इन्तजार मत करो, इन्तजार करने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है। इस लिये मिलते रहो, माफ कर दो, या माफी माँग लो। *मन "ख्वाईशों" मे अटका रहा* *और* *जिन्दगी हमें "जी "कर चली गई.*
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