वीरप्पन का बोल बाला तमिलनाडु में रहा: "कुमार वैभव" तमिलनाडु,वीरप्पन पर 2000 हाथियों और 184 लोगो को मारने का आरोप था। उसने चंदन की कितनी तस्करी की इसका तो अंदाज़ा ही नहीं है। जब 2004 में वीरप्पन का इनकाउंटर हुआ उन दिनों मैं तमिलनाडु के मदुराई शहर में था। यह तमिलनाडु का दूसरा सबसे बड़ा नगर है और अपने 'मीनाक्षी मंदिर' के लिए दुनिया में मशहूर है। वीरप्पन का इनकाउंटर के विजय कुमार नाम के IPS अधिकारी ने किया था जो इस समय जम्मू एंड कश्मीर में गवर्नर के एडवाईजर हैं। उन्होंने वीरप्पन पर एक किताब भी लिखी है। वीरप्पन के मशहूर होने से पहले तमिलनाडु में एक जंगल पैट्रोल पुलिस हुआ करती थी, जिसके प्रमुख होते थे लहीम शहीम गोपालकृष्णन। उनकी बांहों के डोले इतने मज़बूत होते थे कि उनके साथी उन्हें रैम्बो कह कर पुकारते थे। रैम्बो गोपालकृष्णन की ख़ास बात ये थी कि वो वीरप्पन की ही वन्नियार जाति से आते थे। 9 अप्रैल, 1993 की सुबह कोलाथपुर गाँव में एक बड़ा बैनर पाया गया जिसमें रैम्बो के लिए वीरप्पन की तरफ़ से भद्दी भद्दी गालियाँ लिखी हुई थी। उसमें उनको ये चुनौती भी दी गई थी कि अगर दम है तो वो आकर वीरप्पन को पकड़ें। रैम्बो ने तय किया कि वो उसी समय वीरप्पन को पकड़ने निकलेंगे। जैसे ही वो पलार पुल पर पहुंचे, उनकी जीप ख़राब हो गई। उन्होंने उसे छोड़ा और पुल पर तैनात पुलिस से दो बसें ले ली। पहली बस में रैम्बो 15 मुख़बिरों, 4 पुलिसवालों और 2 वन गार्ड के साथ सवार हुए। पीछे आ रही दूसरी बस में अपने छह साथियों के साथ तमिलनाडु पुलिस के इंस्पेक्टर अशोक कुमार चल रहे थे। वीरप्पन के गैंग ने तेज़ी से आती बसों की आवाज़ सुनी। वो परेशान हुए क्योंकि उन्हें लग रहा था कि रैम्बो जीप पर सवार होंगे। लेकिन वीरप्पन ने दूर से से ही देख कर सीटी बजाई। उन्होंने दूर से रैम्बो को आगे आ रही बस की पहली सीट पर बैठे देख लिया था। जैसे ही बस एक निर्धारित स्थान पर पहुंची वीरप्पन के गैंग के सदस्य साइमन ने बारूदी सुरंगों से जुड़ी हुई 12 बोल्ट कार बैटरी के तार जोड़ दिए। एक ज़बरदस्त धमाका हुआ। 3000 डिग्री सेल्सियस का तापमान पैदा हुआ। बसों के नीचे की धरती दहली और पूरी की पूरी बस हवा में उछल गई और पत्थरों, धातु और कटे फटे मांस के लोथड़ों का मलबा 1000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से ज़मीन पर आ गिरा। के विजय कुमार अपनी किताब वीरप्पन 'चेज़िंग द ब्रिगांड' में लिखते हैं, "दृश्य इतना भयानक था कि दूर चट्टान की आड़ में बैठा वीरप्पन भी कांपने लगा और उसका पूरा शरीर पसीने से सराबोर हो गया। थोड़ी देर बार जब इंस्पेक्टर अशोक कुमार वहाँ पहुंचे तो उन्होंने 21 क्षतविक्षत शवों को गिना।" अशोक कुमार ने विजय कुमार को बताया कि उन्होने सारे शवों और घायलों को पीछे आ रही दूसरी बस में रखा लेकिन इस बदहवासी में हम अपने एक साथी सुगुमार को वहीं छोड़ आए क्योंकि वो हवा में उड़ कर कुछ दूरी पर जा गिरा था। उसका पता तब चला जब बस वहाँ से जा चुकी थी। कुछ ही देर में उसने दम तोड़ दिया। ये वीरप्पन का पहला बड़ा हिट था जिसने उसे पूरे भारत में कुख्यात कर दिया। 18 जनवरी 1952 को जन्मे वीरप्पन के बारे में कहा जाता है कि उसने 17 साल की उम्र में पहली बार हाथी का शिकार किया था। हाथी को मारने की उसकी फ़ेवरेट तकनीक होती थी, उसके माथे के बींचोंबीच गोली मारना। के विजय कुमार बताते हैं, "एक बार वन अधिकारी श्रीनिवास ने वीरप्पन को गिरफ़्तार भी किया था। लेकिन उसने सुरक्षाकर्मियों से कहा उसके सिर में तेज़ दर्द है, इसलिए उसे तेल दिया जाए जिसे वो अपने सिर में लगा सके। उसने वो तेल सिर में लगाने की बताए अपने हाथों में लगाया। कुछ ही मिनटों में उसकी कलाइयाँ हथकड़ी से बाहर आ गईं।हालांकि वीरप्पन कई दिनों तक पुलिस की हिरासत में था लेकिन उसकी उंगलियों के निशान नहीं लिए गए।" वीरप्पन की ख़ूंख़ारियत का ये आलम था कि एक बार उसने भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी पी श्रीनिवास का सिर काट कर उससे अपने साथियों के साथ फ़ुटबाल खेली थी। ये वही श्रीनिवास थे जिन्होंने वीरप्पन के पहली बार गिरफ़्तार किया था। विजय कुमार बताते हैं, "श्रीनिवास वीरप्पन के छोटे भाई अरजुनन से लगातार संपर्क में थे। एक दिन उसने श्रीनिवास से कहा कि वीरप्पन हथियार डालने के लिए तैयार है। उसने कहा कि आप नामदेल्ही की तरफ़ चलना शुरू करिए। वो आपसे आधे रास्ते पर मिलेगा। श्रीनिवास कुछ लोगों के साथ वीरप्पन से मिलने के लिए रवाना हुए। इस दौरान श्रीनिवास ने महसूस ही नहीं किया कि धीरे धीरे एक एक कर सभी लोग उसका साथ छोड़ते चले गए।" "एक समय ऐसा आया जब वीरप्पन का भाई अरजुनन ही उनके साथ रह गया। जब वो एक तालाब के पास पहुंचे तो एक झाड़ी से कुछ लोगों की उठती हुई परछाई दिखाई दी। उनमें से एक लंबे शख्स की लंबी लंबी मूछें थी। श्रीनिवासन पहले ये समझे कि वीरप्पन हथियार डालने वाले हैं। तभी उन्हें लगा कि कुछ गड़बड़ है।" "वीरप्पन के हाथ में ऱाइफ़ल थी और वो उनको घूर कर देख रहा था श्रीनिवास ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि वो अरजुनन के साथ बिल्कुल अकेले खड़े थे। वीरप्पन उन्हें देख कर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। इससे पहले कि श्रीनिवासन कुछ कहते, वीरप्पन ने फ़ायर किया। लेकिन वीरप्पन इतने पर ही नहीं रुका। उसने श्रीनिवास का सिर काटा और उसे एक ट्राफ़ी की तरह अपने घर ले गया। वहाँ पर उसने और उसके गैंग ने इनके सिर को फ़ुटबाल की तरह खेला।" अपराध जगत में क्रूरता के आपने कई उदाहरण सुने होंगे लेकिन ये नहीं सुना होगा कि किसी लुटेरे या डाकू ने अपने आप को बचाने के लिए अपनी नवजात बेटी की बलि चढ़ा दी हो। विजय कुमार बताते हैं, "1993 में वीरप्पन की एक लड़की पैदा हुई थी। तब तक उसके गैंग के सदस्यों की संख्या 100 के पार पहुंच चुकी थी एक बच्चे के रोने की आवाज़ 110 डेसिबल के आसपास होती है जो बिजली कड़कने की आवाज़ से सिर्फ़ 10 डेसिबल कम होती है। जंगल में बच्चे के रोने की आवाज़ रात के अंधेरे में ढाई किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकती है।" "एक बार वीरप्पन उसके रोने की वजह से मुसीबत में फ़ंस चुका था। इसलिए उसने अपनी बच्ची की आवाज़ को हमेशा के लिए बंद करने का फ़ैसला किया। 1993 में कर्नाटक एसटीएफ़ को मारी माडुवू में एक समतल ज़मीन पर उठी ही जगह दिखाई दी थी। जब उसे खोद कर देखा गया तो उसके नीचे से एक नवजात बच्ची का शव मिला।" सन 2000 में वीरप्पन ने दक्षिण भारत के मशहूर अभिनेता राज कुमार का अपहरण कर लिया। राजकुमार की हैसियत कन्नड़ फिल्मों में वही थी जो रजनीकांत की तमिल में है।राजकुमार 100 से अधिक दिनों तक वीरप्पन के चंगुल में रहे। इस दौरान उसने कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों राज्य सरकारों को घुटनों पर ला दिया। जून, 2001 में दिन के 11 बजे अचानक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के विजय कुमार के फ़ोन की घंटी बजी। स्क्रीन पर फ़्लैश हुआ, 'अम्मा।' उन्होंने जयललिता के फ़ोन नंबर को अम्मा के नाम से फ़ीड कर रखा था। जयललिता बिना कोई समय गंवाते हुए मुद्दे पर आईं और बोली, "हम आपको तमिलनाडु स्पेशल टास्क फ़ोर्स का प्रमुख बना रहे हैं। इस चंदन तस्कर की समस्या कुछ ज़्यादा ही सिर उठा रही है। आपको आपके आदेश कल तक मिल जाएंगें।" एसटीएफ़ का प्रमुख बनते ही विजय कुमार ने वीरप्पन के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी जमा करनी शुरू कर दी। पता चला कि वीरप्पन की आँख में तकलीफ़ है। अपनी मूछों में ख़िजाब लगाते समय उसकी कुछ बूंदें छिटक कर वीरप्पन की आँख में जा गिरी थी। विजय कुमार बताते हैं, "वीरप्पन को बाहरी दुनिया को ऑडियो और वीडियो टेप्स भेजने का शौक था। एक बार ऐसे ही एक वीडियो में हमने देखा कि वीरप्पन को एक कागज़ पढ़ने में दिक्कत हो रही है। तभी हमें ये पहली बार संकेत मिला कि उसकी आँखों में कुछ गड़बड़ है। फिर हमने फ़ैसला किया कि हम अपने दल को छोटा करेंगे। जब भी हम बड़ी टीम के लिए राशन ख़रीदते थे, लोगों की नज़र में आ जाते थे और वीरप्पन को इसकी भनक पहले से ही मिल जाती थी। इसलिए हमने छह छह लोगों की कई टीमें बनाईं।" वीरप्पन के लिए जाल बिछाया गया कि उसको अपनी आँखों का इलाज कराने के लिए जंगल से बाहर आने के लिए मज़बूर किया जाए। उसके लिए एक ख़ास एंबुलेंस का इंतज़ाम किया गया जिस पर लिखा था एसकेएस हास्पिटल सेलम। उस एंबुलेंस में एसटीएफ़ के दो लोग इंस्पेक्टर वैल्लईदुरई और ड्राइवर सरवनन पहले से ही बैठे हुए थे। वीरप्पन ने सफ़ेद कपड़े पहन रखे थे और पहचाने जाने से बचने के लिए उसने अपनी मशहूर हैंडलबार मूछों को कुतर दिया था। यह 18 अक्टूबर 2004 की रात्रि थी। पूर्व निर्धारित स्थान पर ड्राइवर सरवनन ने इतनी ज़ोर से ब्रेक लगाया कि एंबुलेंस में बैठे सभी लोग अपनी जगह पर गिर गए। के विजय कुमार याद करते हैं, "वो बहुत स्पीड से आ रहे थे। सरवनन ने इतनी तेज़ ब्रेक लगाया कि टायर से हमें धुंआ उठता दिखाई दिया। टायर के जलने की महक हमारी नाक तक पहुंच रही थी। सरवनन दौड़ कर मेरे पास पहुंचा।" "मैंने उसके मुंह से साफ़ साफ़ सुना, वीरप्पन एंबुलेंस के अंदर है। तभी मेरे असिस्टेंट की आवाज़ मेगा फ़ोन पर गूंजी,' हथियार डाल दो। तुम चारों तरफ़ से घिर चुके हो। पहला फ़ायर उनकी तरफ़ से आया। फिर हमारे चारों तरफ़ से गोलियाँ चलने लगी। मैंने भी अपनी ऐके 47 का पूरा बर्स्ट एंबुलेंस में झोंक दिया। छोड़ी देर बाद एंबुलेंस से जवाबी फ़ायर आने बंद हो गए।" "हमने उनपर कुल 338 राउंड गोलियाँ चलाईं। एकदम से सब कुछ धुआं सा हो गया। एक जोर की आवाज़ आई, 'आल क्लीयर।' एनकाउंटर 10 बज कर पचास मिनट पर शुरू हुआ था। 20 मिनटों के अंदर वीरप्पन और उसके तीनों साथी मारे जा चुके थे।" आश्चर्य की बात थी कि वीरप्पन को सिर्फ़ दो गोलियाँ लगी थी। साठ के दशक में जब फ्रांस के राष्ट्पति द गाल की कार पर 140 गोलियां बरसाई गई थी, तब भी सिर्फ़ सात गोलियाँ ही कार पर लग पाई थी। विजय कुमार ने लिखा है, "जब मैंने एम्बुलेंस के अंदर झांका उसकी थोड़ी बहुत सांस चल रही थी। मैं साफ़ देख पा रहा था कि उसका दम निकल रहा था लेकिन तब भी मैंने उसे अस्पताल भेजने का फ़ैसला किया। उसकी बांईं आँख को भेदते हुए गोली निकल गई थी। अपनी मूंछों के बगैर वीरप्पन बहुत साधारण आदमी दिखाई दे रहा था। बाद में उसका पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर वल्लीनायगम ने मुझे बताया कि वीरप्पन का शरीर 52 वर्ष का होते हुए भी एक 25 वर्ष के युवक की तरह था।" वीरप्पन के मरते ही एसटीएफ़ वालों को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा वास्तव में हो चुका है। जैसे ही उन्हें अहसास हुआ, उन्होंने अपने प्रमुख विजय कुमार को कंधों पर उठा लिया। विजय कुमार तेज़ कदमों के साथ दो दो सीढ़ियाँ चढ़ते हुए स्कूल के छज्जे पर पहुंचे। वहाँ से उन्होंने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को फ़ोन लगाया, उनकी सचिव शीला बालाकृणन ने फ़ोन उठाया। वो बोलीं, "मैडम सोने के लिए जा चुकी हैं।" विजय कुमार ने कहा, "मेरा ख़्याल है मुझे जो कुछ कहना है उसे सुन कर वो बहुत ख़ुश होंगी। अगले ही क्षण जयललिता की आवाज़ फ़ोन पर सुनी। मेरे मुंह से निकला, मैम वी हैव गॉट हिम।जयललिता ने मुझे और मेरी टीम को बधाई दी और कहा मुख्यमंत्री रहते हुए मुझे इससे अच्छी ख़बर नहीं मिली।" फ़ोन काटने के बाद विजय कुमार अपनी जीप की तरफ़ बढ़े। उन्होंने एंबुलेंस पर अंतिम नज़र डाली। उसकी छत पर लगी नीली बत्ती अभी भी घूम रही थी। दिलचस्प बात ये थी कि उस पर एक भी गोली नहीं लगी थी। उन्होंने इसे स्विच ऑफ़ करने का आदेश दिया। बुझी हुई बत्ती मानो पूरी दुनिया को बता रही थी, 'मिशन पूरा हुआ।" कृत्य:नायाब टाइम्स


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मुत्यु लोक का सच:*आचार्य रजनीश* (१) जब मेरी मृत्यु होगी तो आप मेरे रिश्तेदारों से मिलने आएंगे और मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो अभी आ जाओ ना मुझ से मिलने। (२) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरे सारे गुनाह माफ कर देंगे, जिसका मुझे पता भी नहीं चलेगा, तो आज ही माफ कर दो ना। (३) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आप मेरी कद्र करेंगे और मेरे बारे में अच्छी बातें कहेंगे, जिसे मैं नहीं सुन सकूँगा, तो अभी कहे दो ना। (४) जब मेरी मृत्यु होगी, तो आपको लगेगा कि इस इन्सान के साथ और वक़्त बिताया होता तो अच्छा होता, तो आज ही आओ ना। इसीलिए कहता हूं कि इन्तजार मत करो, इन्तजार करने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है। इस लिये मिलते रहो, माफ कर दो, या माफी माँग लो। *मन "ख्वाईशों" मे अटका रहा* *और* *जिन्दगी हमें "जी "कर चली गई.*
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प०राम प्रसाद बिस्मिल जी हज़रो नमन: *“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” : कब और कैसे लिखा राम प्रसाद बिस्मिल ने यह गीत!* राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का नाम कौन नहीं जानता। बिस्मिल, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें 30 वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षडयंत्र व काकोरी-कांड जैसी कई घटनाओं मे शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। भारत की आजादी की नींव रखने वाले राम प्रसाद जितने वीर, स्वतंत्रता सेनानी थे उतने ही भावुक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू उपनाम था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है ‘गहरी चोट खाया हुआ व्यक्ति’। बिस्मिल के अलावा वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। *राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ की तरह अशफ़ाक उल्ला खाँ भी बहुत अच्छे शायर थे। एक रोज का वाकया है अशफ़ाक, आर्य समाज मन्दिर शाहजहाँपुर में बिस्मिल के पास किसी काम से गये। संयोग से उस समय अशफ़ाक जिगर मुरादाबादी की यह गजल गुनगुना रहे थे* “कौन जाने ये तमन्ना इश्क की मंजिल में है। जो तमन्ना दिल से निकली फिर जो देखा दिल में है।।” बिस्मिल यह शेर सुनकर मुस्करा दिये तो अशफ़ाक ने पूछ ही लिया- “क्यों राम भाई! मैंने मिसरा कुछ गलत कह दिया क्या?” इस पर बिस्मिल ने जबाब दिया- “नहीं मेरे कृष्ण कन्हैया! यह बात नहीं। मैं जिगर साहब की बहुत इज्जत करता हूँ मगर उन्होंने मिर्ज़ा गालिब की पुरानी जमीन पर घिसा पिटा शेर कहकर कौन-सा बड़ा तीर मार लिया। कोई नयी रंगत देते तो मैं भी इरशाद कहता।” अशफ़ाक को बिस्मिल की यह बात जँची नहीं; उन्होंने चुनौती भरे लहजे में कहा- “तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊँगा आपकी सोच जिगर और मिर्ज़ा गालिब से भी परले दर्जे की है।” *उसी वक्त पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने यह शेर कहा* “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजु-कातिल में है?” यह सुनते ही अशफ़ाक उछल पड़े और बिस्मिल को गले लगा के बोले- “राम भाई! मान गये; आप तो उस्तादों के भी उस्ताद हैं।” आगे जाकर बिस्मिल की यह गज़ल सभी क्रान्तिकारी जेल से पुलिस की गाड़ी में अदालत जाते हुए, अदालत में मजिस्ट्रेट को चिढ़ाते हुए और अदालत से लौटकर वापस जेल आते हुए एक साथ गाया करते थे। बिस्मिल की शहादत के बाद उनका यह गीत क्रान्तिकारियों के लिए मंत्र बन गया था। न जाने कितने क्रांतिकारी इसे गाते हुए हँसते-हँसते फांसी पर चढ़ गए थे। पढ़िए राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखा गया देशभक्ति से ओतप्रोत यह गीत – सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है? वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ! हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है? एक से करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है। रहबरे-राहे-मुहब्बत! रह न जाना राह में, लज्जते-सेहरा-नवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है। अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत अब दिले-‘बिस्मिल’ में है । ए शहीद-ए-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है। खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है? है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर, और हम तैयार हैं सीना लिये अपना इधर। खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। हाथ जिनमें हो जुनूँ , कटते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से, और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है , सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पे कफ़न, जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम। जिन्दगी तो अपनी महमाँ मौत की महफ़िल में है, सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार, “क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?” सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है? दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज। दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है! सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमें न हो खूने-जुनूँ, क्या वो तूफाँ से लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है। पं० राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ उनके इस लोकप्रिय गीत के अलावा ग्यारह वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में बिस्मिल ने कई पुस्तकें भी लिखीं। जिनमें से ग्यारह पुस्तकें ही उनके जीवन काल में प्रकाशित हो सकीं। ब्रिटिश राज में उन सभी पुस्तकों को ज़ब्त कर लिया गया था। पर स्वतंत्र भारत में काफी खोज-बीन के पश्चात् उनकी लिखी हुई प्रामाणिक पुस्तकें इस समय पुस्तकालयों में उपलब्ध हैं। 16 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा का आखिरी अध्याय (अन्तिम समय की बातें) पूर्ण करके जेल से बाहर भिजवा दिया। 18 दिसम्बर 1927 को माता-पिता से अन्तिम मुलाकात की और सोमवार 19 दिसम्बर 1927 को सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें फाँसी दे दी गयी। राम प्रसाद बिस्मिल और उनके जैसे लाखो क्रांतिकारियों के बलिदान का देश सद्येव ऋणी रहेगा! जय हिन्द !
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गुरुनानक देव जयन्ती बधाई: मृत्यु लोक के सभी जीव जंतु पशु पक्षी प्राणियों को स्वस्थ शरीर एवं लम्बी उम्र दे खुदा आज के दिन की *💐🌹*गुरु नानक जयन्ती पर देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं/लख लख मुबारक।*💐🌹 * हो.. रब से ये दुआ है कि आपके परिवार में खुशियां ही खुशियाँ हो आमीन..! अपने अंदाज में मस्ती से रहा करता हूँ वो साथ हमारे हैं जो कुछ दूर चला करते हैं । हम आज है संजीदा बेग़म साहेबा के साथ.....! *अस्लामु अलैकुम/शुभप्रभात* हैप्पी सोमवार
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हैप्पी बर्थडे राधा विष्ट जी: *यौमे पैदाइश की पुरखुलूस मुबारकबाद राधा विष्ट साहेबा को जो "कोरोना वाररिर्स" महामारी के माहौल में जनता की सेवा में सदैव हैं* लखनऊ, *यौमे पैदाइश की पुरजोर मुबारकबाद* राधा बिष्ट डॉ० "फार्मेसिस्ट" प्रभारी राजकीय होम्योपैथी चिकित्सालय (सदर) कैनाल भवन परिसर कैण्ट रोड लखनऊ को हमारी रब से दुआ है कि वो सदैव इस जहांन में लम्बी आयु के साथ सपरिवार स्वस्थ रहे। जो कोरोना वाररिर्स महामारी के माहौल में जनता की सेवा में रहा करती हैं और कोविड-19 से बचाव की दवाओ के साथ साथ कुछ क्षेत्रीय जटिल रोगों की भी दवाओं को परेशान जनता को साथ साथ पर्वत सन्देश के मोहन चन्द्र जोशी "सम्पादक" जानकी पुरम लखनऊ (उ०प्र०) निवासी दवाए प्राप्त करते हुए उनके साथ मनोज कुमार हैं । राधा बिष्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि चिकित्सालय में आनेवाले मरीज़ो को सदैव उनकी समस्या का निराकरण कर उन्हें उचित परामर्श एवं अनुभव के आधार पर दवाए उपलब्ध चिकित्सालय में कराती हैं "हैप्पी बर्थडे राधा विष्ट" जी । कृत्य:नायाब टाइम्स
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